Our Jinswara Forum is a storehouse of thousands of bhaktis and paths by our great poets. Here is the list of content on the topic Holi available on forum. The content includes the story of holi as per our jain history as provided in Gyananand Shravakachar and the many bhajans by Pt. Daulatram Ji, Pt. Bhudhardas Ji, Pt. Dyanatray Ji, Pt. Bhaagchand Ji, Pt. Budhjan Ji among others.
It’s far more joyful to enjoy the holi of adhyatmik colours with these adhyatmik bhajans rather than playing with water and harmful colours.
Following are the links of the content available on Holi-
Story of Holi Festival
There is no significance of Holi in Jainism. However, there is a story behind this festival coming into practice.
The story goes like this:
Holi was the name of the daughter of a moneylender. She had affair with another man with the help of her maid.
Later on, Holi thought that only her maid knows about this. If she told this to anyone, my life will be ruined so I should kill her.
Thinking this way, Holi burned the maid in the fire. The maid became the ghost(vynatar devi) in the next birth.…
ज्ञानी ऐसे होली मचाई | Gyani ese holi machai
ज्ञानी ऐसे होली मचाई।। टेक।।
राग कियो विपरीत विपन-घर, कुमति कुसौति भगाई।
धर दिगम्बर कीन्ह सुसंवर, निज-पर-भेद लखाई।
घात विषयन की बचाई।। ज्ञानी॰।।
कुमति सखा भज ध्यान भेद सज, तन में तान उड़ाई।
कुम्भक ताल मृदंग सो पूरक, रेचक बीन बजाई।
लगन अनुभव सों लगाई।। ज्ञानी॰।।
कर्म बलीता रूप नाम अरि, वेद सुइन्द्रि गनाई।
दे तप-अग्नि भस्म करि तिनको, धूलि-अघाति उड़ाई।
करी शिवतिय सों मिलाई।। ज्ञानी॰।।
ज्ञान को पफाग भागवश आवे, लाख करो चतुराई।
सो गुरु दीनदयाल कृपा करि, ‘दौलत’ तोहि बताई।
नहीं चित से विसराई।।…
होली खेलें मुनिराज । Holi Khelein Muniraaj
होली खेलें मुनिराज, शिखर वन में, रे अकेले वन में,
मधुवन में ।।
मधुवन में आज मची रे होली, मधुवन में ।।टेक।।
चैतन्य गुफा में मुनिवर बसते, अनंत गुणों में केली करते।
एक ही ध्यान रमाये वन में, मधुवन में ।।1।।
ध्रुवधाम ध्येय की धूनी लगाई, ध्यान की धधकती अग्नि जलाई।
विभाव का ईंधन जलावें वन में, मधुवन में ।।2।।
अक्षय घट भरपूर हमारा, अंदर बहती अमृत धारा।
पतली धार न भाई मन में, मधुवन में ।।3।।
हमें तो पूर्ण दशा ही चहिए, सादि अनंत का आनंद लहिये।
निर्मल भावना भाई मन में, मधुवन में ।।4।।
पिता झलक …
रंग बिरंगी होली आई | Rang birangi holi aayi
रंग बिरंगी होली आई,खुश होते सब बहनें भाई
आओ अनोखी होली खेलें, जो खेली मुनिराजों ने
करुणा क्षमा का रंग बनायें, ज्ञान गुलाल सदा उडायें।
सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित की पिचकारी हम लेकर आयें।
मम्मी ने समझाया हमको, नहीं किसी पर रंग डालना।
नहीं दीवारें गंदी करना, नहीं कहीं पर रंग उड़ाना।
इनसे नहीं कुछ लाभ है भाई
पानी जितना खर्च करोगे, उतना पाप कमाओगे
धर्म भाव की होली खेलो, तो आनंद मनाओगे।
इसमें ही हम सबकी भलाई।
अहो दोऊ रंग भरे खेलत होरी | Aho dou rang bhare khelat hori
अहो दोऊ रंग भरे खेलत होरी, अलख अमूरति की जोरी || टेक ||
इतमैं आतम राम रंगीले, उतमैं सुबुद्धि किसोरी |
या कै ज्ञान सखा संग सुन्दर, बाकै संग समता गोरी || १ ||
सुचि मन सलिल दया रस केसरि, उदै कलस में घोरी |
सुधी समझि सरल पिचकारि, सखिय प्यारी भरि भरि छोरी || २ ||
सत-गुरु सीख तान धुरपद की, गावत होरा होरी |
पूरव बंध अबीर उड़ावत, दान गुलाल भर झोरी || ३ ||
‘भूधर’ आजि बड़े भागिन, सुमति सुहागिन मोरी |
सो ही नारि सुलछिनी जग में, जासौं पतिनै रति जोरी || ३ ||
Artist : कविवर पं. भूधरदास जी
चेतन खेलै होरी | Chetan khele hori
चेतन खेलै होरी |
सत्ता भूमि छिमा वसन्त में, समता प्रान प्रिया संग गोरी || टेक ||
मन को कलश प्रेम को पानी, तामें करूना केसर घोरी |
ज्ञान-ध्यान पिचकारी भरि भरि, आपमें छारै होरा होरी || १ ||
गुरु के वचन मृदंग बजत हैं, नय दोनों डफ ताल टकोरी |
संजम अतर विमल व्रत चोवा, भाव गुलाल भरै भर झोरी || २ ||
धरम मिठाई तप बहु मेवा, समरस आनन्द अमल कटोरी |
‘द्यानत’ सुमति कहै सखियन सों, चिरजीवो यह जुग-जुग जोरी || ३ ||
Artist- पं. द्यानतराय जी
Meaning-
आत्मा इस प्रकार होली खेलता है। सत्ता रूपी भूमि है, क…
जे सहज होरी के खिलारी | Je sahaj hori ke khilari
जे सहज होरी के खिलारी, तिन जीवन की बलिहारी ।।टेक ।।
शांतभाव कुंकुम रस चन्दन, भर समता पिचकारी ।
उड़त गुलाल निर्जरा संवर, अंबर पहरैं भारी ।।१ ।।
सम्यकदर्शनादि सँग लेकै, परम सखा सुखकारी ।
भींज रहे निज ध्यान रंगमें, सुमति सखी प्रियनारी ।।२ ।।
कर स्नान ज्ञान जलमें पुनि, विमल भये शिवचारी ।
`भागचन्द’ तिन प्रति नित वंदन, भावसमेत हमारी ।।३ ।।
Artist - पं. श्री भागचंद जी
होरी हो रही हो नगर में | hori ho rhi nagar me
[राग-जंगला]
होरी हो रही हो नगर में ।।
मेरे पिया चेतन घर नाहीं, मोकूँ होरी को।।1।।
सोति कुमति संग राच रह्यो है, किहि विधि ल्यावत सो।।2।।
‘द्यानत’ कहै सुमति सखियन को, तुम कछु शिक्षा द्यो।।3।।
Artist- पं. द्यानतराय जी
Meaning-
वाह, सारे नगर में होली मनाई जा रही है। परन्तु मेरे पति तो घर पर ही नहीं हैं, मैं कैसे होली खेलूँ? मेरे पति तो कुमति के साथ रच-पच रहे हैं, उन्हें किसी प्रकार लाओ। द्यानतराय कहते हैं कि सुमति अपनी सखियों से कह रही है कि तुम उसको कुछ शिक्षा देओ।
खेलौंगी होरी, आये चेतनराय | Khelungi hori, aaye chetanraay
खेलौंगी होरी, आये चेतनराय।। खेलौंगी।। टेक।।
दरसन वसन ज्ञान रँग भीने, चरन गुलाल लगाय।।1।।
आनँद अतर सुनय पिचकारी, अनहद बीन बजाय।।2।।
रीझौं आप रिझावौं पिय को, प्रीतम लौं गुन गाय।।3।।
‘द्यानत’ सुमति सुखी लखि सुखिया, सखी भंई बहु भाय।।4।।
Artist- पं. द्यानतराय जी
Meaning-
अहो चेतन राजा आ गये, अब मैं होली खेलूँगी। दर्शनरूपी वस्त्रों को ज्ञान रंग में भिगोकर चारित्रा का गुलाल लगाउफंगी। आनन्द का इत्रा सुनय की पिचकारी लेकर अनहद बीन बजाउफंगी। स्वयं भी रीझूंगी और अपने राजा का भी रिझाउफंगी। प्रियतम के…
भली भई यह होरी आई | bhali bhyi yeh hori aayi
भली भई यह होरी आई, आये चेतनराय।। भली॰।। टेक।।
काल बहुत प्रीतम बिन बीते, अब खेलौं मन लाय।।1।।
सम्यक रंग गुलाल वरत में, राग विराग सुहाय।
‘द्यानत’ सुमति महासुख पायो, सो वरन्यो नहिं जाय।।2।।
Artist- पं. द्यानतराय जी
Meaning-
बहुत अच्छी होली आई है कि चेतनराजा आ गये। प्रियतम के बिना बहुत काल बीत गया, अब मैं मन लगाकर उनसे खेलँूगी।सम्यक्त्व रूप रंग और व्रतरूपी गुलाल के साथ राग को वैराग्य में बदलकर अच्छा लग रहा है। द्यानतराय कहते हैं कि आज सुमति ने जो महासुख पाया है, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।
होरी खेलूंगी घर आए चिदानंद | Hori khelungi ghar aaye Chidanand
होरी खेलूंगी घर आए चिदानंद |
शिशर मिथ्यात गई अब, आइ काल की लब्धि वसंत || टेक ||
पीय संग खेलनि कौं, हम सइये तरसी काल अनंत |
भाग जग्यो अब फाग रचानौ, आयौ विरह को अंत || १ ||
सरधा गागरि में रूचि रुपी, केसर घोरि तुरन्त |
आनन्द नीर उमंग पिचकारी, छोडूंगी नीकी भंत || २ ||
आज वियोग कुमति सौतनि कौ, मेरे हरष अनंत |
‘भूधर’ धनि एही दिन दुर्लभ, सुमति राखी विहसंत || ३ ||
Artist: कविवर पं. भूधरदास जी
Meaning-
सुमति रूपी नारी कहती है कि आज मैं सचमुच होली खेलूंगी, क्योंकि आज मेरे स्वामी चिदानंद मेरे घर …
मेरो मन खेलत ऐसी होरी | Mero mnn khelat esi hori
मेरो मन खेलत ऐसी होरी।।टेक।।
मन मिरदंग साजि कर त्यारी, तन को तमूरा बनो री।।
सुमति सुरंग सरंगी बजाई, ताल दोऊ कर जोरी।।
राग पांचो पद को री ।। मेरो॰।।
समकित रूप नीर भर झारी, करुना केशर घोरी।
ज्ञानमई लेकर पिचकारी, दोउ कर मांहि सम्होरी।
इन्द्रिय पांचों सखि बोरी ।। मेरो॰।।
चतुर दान को है गुलाल सो, भर-भर मूंठ चलो री।
तप मेवा सों भर निज झोरी, यश को अबीर उड़ो री।
रंग जिनधम मचो री ।। मेरो॰।।
‘दौलत’ बाल खेलें अस होरी, भव-भव दुःख टलो री।
शरना लै इक श्री जिन को री, जग में लाज रहे तोरी।।
मिलै फगुआ …
निजपुर में आज मची रे होरी | Nijpur me aaj machi re hori
निजपुर में आज मची रे होरी |
उमँगि चिदानन्दजी इत आये, इत आई सुमती गोरी || टेक ||
लोकलाज कुलकानि गमाई, ज्ञान गुलाल भरी झोरी |
समकित केसर रंग बनायो, चारित की पिचुकी छोरी || १ ||
गावत अजपा गान मनोहर, अनहद झरसौं वरस्यो री |
देखन आये ‘बुधजन’ भीगे, निरख्यौ ख्याल अनोखो री || २ ||
Artist: कविवर पं. बुधजन जी
Meaning-
अहो, आज निजपुर (आत्मनगर) में होली मची हुई है। देखो, इधर चिदानन्दजी उमंग कर आ रहे हैं और उधर से सुमति गोरी आ रही है। इन्होंने लोकलाज, कुलमर्यादा छोड़कर ज्ञानगुलाल की झोली भर ली है। सम्य…
श्री जिनवर दरबार, खेलूंगी होरी | Shri jinvar darbaar, khelunga hori
श्री जिनवर दरबार, खेलूंगी होरी।। श्री जिनवर।। टेक।।
पर विभाव का भेष उतारूं, शुद्ध स्वरूप बनाय, खेलूंगी होरी।।1।।
कुमति नारिकौं संग न राखूं, सुमति नारि बुलवाय, खेलूंगी होरी।।2।।
मिथ्या भसमी दूर भगाउफं, समकित रंग चुवाय, खेलूंगी होरी।।3।।
निजरस छाक छक्यौ ‘बुधजन’ अब, आनँद हरष बढाय, खेलूंगी।।4।।
Artist : कविवर पं. बुधजन जी
Meaning-
अहो, अब मैं श्री जिनेन्द्र के दरबार में होली खेलूँगी। पर-विभाव का भेष उतारकर शुद्ध स्वरूप बनाऊँगी। अब मैं कुमति रूपी स्त्री को अपने साथ नहीं रखूंगी और सुमतिरूपी स्त…
पिया बिन कैसे खेलूँ होरी | Piya bin kaise khelun hori
पिया बिन कैसे खेलूँ होरी।।टेक।।
आतमराम पिया नहिं आये, मोकूँ कैसी होरी।।1।।
एक बार प्रीतम संग खेलैं, समकित केसर घोरी।
‘द्यानत’ वो समयो कब पाऊँ, सुमति कहै कर जोरी।।2।।
Artist- पं. द्यानतराय जी
Meaning-
सुमति रूपी स्त्री हाथ जोड़कर कहती है कि अरे, मैं अपने पति आतमराम के बिना होली कैसे खेलूँ? मेरे पति आतमराम अभी मेरे पास आये ही नहीं हैं, मुझे होली का क्या अर्थ है? मैं तो उस धन्य अवसर की प्रतीक्षा कर रही हूँ जब मैं एक बार सम्यक्त्व रूपी केसर घोलकर अपने पति के साथ होली खेलूँगी।
चेतन ! खेल सुमति संग होरी | Chetan khel sumati sang hori
चेतन ! खेल सुमति संग होरी |
तोरि आन की प्रीति सयाने, भली बनी या जौरी || टेक ||
डगर डगर डोले है यौं ही, आव आपनी पौरी |
निज रस फगुवा क्यौं नहिं बांटो, नातर ख्वारी तोरी || १ ||
छार कषाय त्यागी या गहि लै, समकित केशर घोरी |
मिथ्या पाथर डारि धारि लै, निज गुलाल की झोरी || २ ||
खोटे भेष धरैं डोलत है, दुख पावै बुधि भोरी |
‘बुधजन’ अपना भेष सुधारो, ज्यौं विलसो शिवगोरी || ३ ||
Artist : कविवर पं. बुधजन जी
और सब मिलि होरि रचावैं | Aur sab mili hori rachave
और सब मिलि होरि रचावैं, हूँ काके संग खेलौंगी होरी || टेक ||
कुमति हरामिनि ज्ञानी पिया पै, लोभ मोह की डारी ठगौरी |
भोरै झूठ मिठाई खवाई खोंसि लये गुन करि बरजोरी || १ ||
आप हि तीन लोक के साहिब, कौन करै इनकै सम जोरी |
अपनी सुधि कबहूं नहिं लेते, दास भये डोलैं पर पौरी || २ ||
गुरु ‘बुधजन’ तैं सुमति कहत हैं, सुनिये अरज दयाल सु मोरी |
हा हा करत हूँ पांय परत हूँ, चेतन पिय कीजे मो ओरी || ३ ||
Artist : कविवर पं. बुधजन जी