होली खेलें मुनिराज, शिखर वन में, रे अकेले वन में,
मधुवन में ।।
मधुवन में आज मची रे होली, मधुवन में ।।टेक।।
चैतन्य गुफा में मुनिवर बसते, अनंत गुणों में केली करते।
एक ही ध्यान रमाये वन में, मधुवन में ।।1।।
ध्रुवधाम ध्येय की धूनी लगाई, ध्यान की धधकती अग्नि जलाई।
विभाव का ईंधन जलावें वन में, मधुवन में ।।2।।
अक्षय घट भरपूर हमारा, अंदर बहती अमृत धारा।
पतली धार न भाई मन में, मधुवन में ।।3।।
हमें तो पूर्ण दशा ही चहिए, सादि अनंत का आनंद लहिये।
निर्मल भावना भाई मन में, मधुवन में ।।4।।
पिता झलक ज्यों पुत्र में दिखती, जिनेन्द्र झलक मुनिराज चमकती।
श्रेणी माण्डी पलक छिन में मधुवन में ।।5।।
नेमिनाथ गिरनार पर देखो, शत्रुंजय पर पाण्डव देखो।
केवलज्ञान लियो है छिन में, मधुवन में ।।6।।
बार बार वंदन हम करते, शीश चरण में उनके धरते।
भव से पार लगाए वन में, मधुवन में ।।7।।
ऐसी होली हम हू खेलें, निज आतम को हम हू देखें।
ज्ञान में ज्ञान रमायो पल में, मधुवन में ।।8।।