चेतन खेलै होरी |
सत्ता भूमि छिमा वसन्त में, समता प्रान प्रिया संग गोरी || टेक ||
मन को कलश प्रेम को पानी, तामें करूना केसर घोरी |
ज्ञान-ध्यान पिचकारी भरि भरि, आपमें छारै होरा होरी || १ ||
गुरु के वचन मृदंग बजत हैं, नय दोनों डफ ताल टकोरी |
संजम अतर विमल व्रत चोवा, भाव गुलाल भरै भर झोरी || २ ||
धरम मिठाई तप बहु मेवा, समरस आनन्द अमल कटोरी |
‘द्यानत’ सुमति कहै सखियन सों, चिरजीवो यह जुग-जुग जोरी || ३ ||
Artist- पं. द्यानतराय जी
Meaning-
आत्मा इस प्रकार होली खेलता है। सत्ता रूपी भूमि है, क्षमा रूपी वसन्त )तु है और समता रूपी प्राणप्रिया गोरी का साथ है। मन का कलश है और प्रेम का पानी है, जिसमें करुणारूपी केशर घोली गई है। ज्ञान-ध्यान की पिचकारी भर-भरकर आत्मा छोड़ रहा है और होली हो रही है। गुरु के वचन रूपी मृदंग बज रहे हैं, दोनों नयों की डपफताल बज रही है, संयम रूपी इत्रा है, निर्मल व्रतों का चोबा है और अच्छे भावों की गुलाल से झोली भरी है। ध्र्म रूपी मिठाई है जिसमें तप रूपी बहुत मेवा है। समता रूपी आनन्द रस की कटोरी भरी है। कवि द्यानतराय कहते हैं कि सुमति अपनी सखियों से कहती है कि ऐसी यह होली जुग-जुग जीओ।