खेलौंगी होरी, आये चेतनराय।। खेलौंगी।। टेक।।
दरसन वसन ज्ञान रँग भीने, चरन गुलाल लगाय।।1।।
आनँद अतर सुनय पिचकारी, अनहद बीन बजाय।।2।।
रीझौं आप रिझावौं पिय को, प्रीतम लौं गुन गाय।।3।।
‘द्यानत’ सुमति सुखी लखि सुखिया, सखी भंई बहु भाय।।4।।
Artist- पं. द्यानतराय जी
Meaning-
अहो चेतन राजा आ गये, अब मैं होली खेलूँगी। दर्शनरूपी वस्त्रों को ज्ञान रंग में भिगोकर चारित्रा का गुलाल लगाउफंगी। आनन्द का इत्रा सुनय की पिचकारी लेकर अनहद बीन बजाउफंगी। स्वयं भी रीझूंगी और अपने राजा का भी रिझाउफंगी। प्रियतम के गुण गाउफंगी। द्यानतराय कवि कहते हैं कि सुमति को सुखी देखकर उसकी सभी सखियाँ सुखी हो गई।