दूध भक्ष्य या अभक्ष्य

This is how milk is produced in a mammal.

एक समय के लिए सारी बाते मान ली जाय कि आगम में तीर्थकंर और चक्रवर्ती द्वारा जो पशु दूध की बात बताई है वह सही है। तो क्या यह नहीं माना जा सकता कि जो इस video में जो बताया गया है उस तरह न होता हो milk production इसलिए वह दूध लेते हो। या गाय अपने आप दूध देती हो जैसे गोबर देती है इसलिए लेते हो।

और रही बात दूध के अभक्ष्य होने की । अभक्ष्य का अर्थ होता है जो खाने योग्य न हो। अगर हम बहुत प्राचीन ग्रंथो का उदाहरण ले तो हमें आलू की बात नहीं दिखेगी क्योंकि India में आलु पुर्तगाली ले कर आये औऱ बाद में britishers । पर बाद में ज्ञानियो द्वारा देखने पर पता चला कि कितने जीव होते है तो आलू को अभक्ष्य बताया गया। वर्तमान परिपेक्ष्य में जो वस्तु खाने योग्य न दिखे उसे सिर्फ इसलिए खाने योग्य बताना क्यों कि तीर्थंकर ने खाया यह सही नही है। अगर चतुर्थ काल के बातें को पंचम मैं भी सही बताया जाय तो जैसे एक पुरूष की अनेक शादियों बताई है तो वह आज के समय मे सही मान ले हम।

3 Likes

मैने बचपन से दही का त्याग करा हुआ था क्यूंकि वो बैक्टेरिया से बनती है । शादी के बाद मैंने 25 साल बाद दही का भक्षण किया । जब ब्रह्मचारी कल्पना दीदी ने बताया कि वो अभक्ष्य नहीं है भक्ष्य है और अगर हम उस अभक्षय जान कर छोड़ेगे तो उसमें देव शास्त्र गुरु का अवर्णवाद है।
एक बार वैज्ञानिको की तरफ़ से यह प्रश्न उठाया गया कि जैनी आहिंसक बनते हैं और दही खाते है। तब आ० फूलचन्द सिद्धांत शास्त्री जैन विधी से जमाई दही लेकर लैब में गए वहाँ जैन विधी से जमाई दही और जामन से जमाई दही दोनों की testing हुई । जैन विधि से जमाई दही में बिल्कुल भी bacterias नहीं पाए गए । और दूसरी दही में चलते फिरते बैक्टेरिया मिले ।
और रही बात दूध कि तो दूध अभ्क्ष्य नहीं है पर अगर जानवरों को पीड़ा देकर निकाला जाता है तो अभक्ष्य है। बछडे के पीने के बाद जितना दूध निकलता है उसमें कोई दोष नहीं है। 24 में से 23 तीर्थंकर ने भी प्रथम पारणा दूध से बनी खीर से ही की । दूध ,दही ,पनीर की जिनागम में मर्यादा बताई है इससे ही पता चलता है कि मर्यादा के अंदर अंदर सब भक्ष्य है , पर मर्यादा के बाहर सब अभक्ष्य है

9 Likes

इतनी सब बातों में मेरे कुछ प्रश्नों के उत्तर नही है।
आगम और जिनवचन किसे मानना। क्या आज किसी शास्त्री द्वारा कोई book लिखी जाय औऱ उसमे लिखा जाय ये में नहीं कह रहा जिनेन्द्र देव ने कहे है तो क्या वो acceptable हैं!?
प्राचीन ग्रंथों का रेफ्रेनेंस क्यों नहीं है जहाँ लिखा हो पशु दूध से ही पारणा हुआ

चलते फ़िरते bacteria दिखना और बैक्टीरिया से ही formation होना दो अलग बातें हैं।मुझे अभी तक यही ज्ञात है कि दही किसी भी तरह से जमाया जाय जमता bectaria के वज़ह से ही है। यदि आपके पास कोई वीडियो pdf कुछ हो तो शेयर करें प्लीज।

1 Like

बात वही है कि निकलता नही है निकाला जाता है। अगर मूत्र और गोबर की तरह निकले तो शायद सही हो सकता है सेवन

गाय का दूध नही निकाला जाय तो क्या होगा ?


राजीव दीक्षित जी।
3 Likes

इस तर्क में दोष आता है। ऐसा स्वीकारने में तो भरण - पोषण करने के प्रत्येक कार्य में दोष दिखेगा।

  • भरण पोषण - माता पिता द्वारा अपनी संतान का आदि का पालन पोषण के कार्य…

  • जीवों के परस्पर व्यवहार में कर्तव्य और अधिकार का संबंध स्वयमेव बन जाता है। यह मर्यादा के बाहर जाने पर हिंसा का रूप ले लेते है।

अतः आगम में जब भी गौरसो की बात आती है तब वह पशु धन से प्राप्त दूध दही आदि की ही बात है, सोया - बादाम आदि के नहीं।

2 Likes

क्या द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा का comparison सही है?
दूध निकालने की प्रक्रिया द्रव्य हिंसा है। @Sulabh

This is how capacity of milk production is increased. And we are fed with lie that cow gives milk more than it’s need

1 Like

आगम में कौन से और किस प्रकार के ग्रंथ आते है

अभी थोड़ी देर के लिए यदि हम सभी अपने हठ एक तरफ रख कर विचार करें तो निम्न बिन्दु ख्याल में आएंगे।

  1. जिनवाणी में गोरस की मर्यादा बताई गई है।
  2. अनेक स्थानों पर तीर्थंकरों के द्वारा गोरस से बनी हुई खीर का प्रथम आहार हुआ है।
  3. दही की मर्यादा का वर्णन भी आगम में आया है।
  4. आगम प्रमाण भी प्रस्तुत किये जा चुके हैं।
  5. लोक व्यवहार की दृष्टि से भी गाय का दूध दोहन करना किसी जीव की हत्या, अथवा उसे बहुत अधिक कष्ट पहुँचाने के समान नहीं है।
  6. सोया आदि के दूध की चर्चा का मुद्दा यदि सही है, तो इसके संबंध में आगम प्रमाण कहाँ हैं? चाहे पुराने आचार्यों के अथवा पिछले 700 साल के।
  7. क्या तीर्थंकर के ज्ञान में कभी उपर्युक्त तर्क ज्ञान में नहीं आये होंगे?
  8. क्या तीर्थंकर के समय मे गाय अपने आप अपना दूध दुह कर दे देती होगी?
  9. मुनिराज आदि भी दूध का सेवन करते हैं। तो क्या उन्हें भी आर्ष परंपरा से कभी इसके संबंध में विवादित प्रमाण नहीं मिले?
  10. क्या आज का विज्ञान तीर्थंकर के ज्ञान से भी अधिक सूक्ष्म है?
  11. यदि दूध के संबंध में हिंसा का दोष सम्मिलित किया जा रहा है, तो अन्य आरम्भ आदि के कार्य भी नहीं करने चाहिए।
  12. समस्त प्रकार की हिंसा से बचने का प्रयास यदि प्रत्येक भूमिका वाला करेगा तो निष्क्रिय होने का दोष आ जावेगा। ।
  13. वेगन जो कार्य कर रहे हैं, वह निंदनीय नहीं है, किन्तु जहाँ पर आगम हमे सम्मति देता हो, और जहाँ अन्य तर्क भी किसी भी प्रकार से दोष को प्राप्त होते हों, वहाँ आगम की आज्ञा शिरोधार्य होना चाहिए।
  14. क्या सोया बादाम आदि से घी आदि का उत्पादन भी संभव है?
  15. यदि घी आदि का उत्पादन सम्भव है, और हम उसे भक्ष्य बताते हैं, तो आने वाले समय मे कोई सामाजिक समुदाय विशेष पेड़ पौधों के द्वारा उत्पन्न खाद्यान को भी हिंसक बतावेगा। तो उस समय हमारे पास क्या उपाय होगा?
  16. हिंसा आदि तो प्रत्यक्ष जिन मंदिर के निर्माण, मुनि आदि के भोजन, सामान्य जीवन यापन में भी है, जिनको रोकना संभव है, तो क्या उन पर भी प्रतिबंध होना चाहिए?
  17. स्त्री पुरुष के संसर्ग के समय भी पुरुष के वीर्य से असंख्यात जीवों का निकलना एवं उनका मरण होता है, तो क्या इस बंद हो सकने वाली हिंसा पर भी प्रतिबंध लगाकर अहिंसक जीवन श्रावक भूमिका में भी पूर्ण रूप से पालने योग्य नियम बना देने चाहिए?
  18. क्या मर्यादा के भीतर की हिंसा भी श्रावक की भूमिका में निषिद्ध है? तो फिर उद्योगी हिंसा और विरोधी हिंसा की छूट आगम में क्यों दी?
  19. यदि गाय का दूध निकाल कर मनुष्य उसका पान करता तो हिंसा का दोष आता है, क्योंकि यह कार्य हिंसात्मक है। तो फिर इस तरह जन सामान्य के बीच होने वाला व्यापार, धन आदि का लेन देन भी तो प्रकृति के विरुद्ध सिद्ध होगा। तब लोक व्यवहार का पालन कैसे संभव रहेगा?
  20. त्यागी व्रतियों को दूध दही के प्रति अत्यंत राग है इसलिए वे उसे आगमसम्मत और जिनआज्ञा के नाम पर ग्रंथों में लिख कर चले गए। यदि ऐसा व्यक्तिगत मानना हो तो इसका उपाय तो अन्य कुछ नहीं दिखता।
  21. जिस ग्रंथ में प्रयोजन भूत तत्वों का वर्णन सही हो, उसमे अन्य अनुयोग का वर्णन भी सही होगा। जिसमें प्रयोजन भूत तत्त्वों का वर्णन गलत हो उसमे अन्य वर्णन सही होने पर भी मिथ्या है। कुछ इस तरह की चर्चा मोक्षमार्ग प्रकाशक जी मे आयी है।
  22. यदि बौद्धिक विचारों के चिंतन मात्र से जिनागम की परीक्षा की जाए, तो प्रश्न ये है कि कुन्दकुन्द आचार्य ने सब कुछ सही लिखा है इसका क्या प्रमाण है? समन्तभद्र आचार्य ने सब कुछ सही लिखा है इसका क्या प्रमाण है?
  23. क्या प्राकृत/संस्कृत के ग्रंथ जो आज से 1200 या इससे भी अधिक पूर्व में लिखे गए हो वे ही प्रामाणिक हैं?
  24. यदि हाँ तो श्वेताम्बर मत के ग्रंथ भी अत्यंत प्राचीन हैं। उन्हें भी योग्य मान लेना चाहिए।
  25. जहाँ बहुधा ज्ञानियों के मत एक हों उसे प्रामाणिक स्वीकार करना योग्य है, हठ पूर्वक अपनी बात को सिद्ध करना जिनआज्ञा का अवर्णवाद ही है।

शेष आप विचार करें। और हो सके तो इस विषय को यही विराम दें।
आगम प्रमाण मिलने के बाद भी आपकी सहमति होगी ही इसका भी कोई प्रमाण नहीं है, क्योंकि यह विषय आगम का न होकर व्यक्तिगत श्रद्धा का हो गया है।

क्षमा।

10 Likes

द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा का संबंध -
जब भी स्थूल द्रव्य हिंसा होती है तब तब भाव हिंसा होती ही है, परंतु जब भाव हिंसा हो तब तब द्रव्य हिंसा भी हो ये जरूरी नहीं है। इसका विचार करिएगा।

हां, आरंभ की क्रिया होने से द्रव्य हिंसा तो होगी, परंतु हिंसा भी संकल्पी आदि के भेद से चार प्रकार की होती है। मुनिराज के सर्व हिंसा का त्याग होने से वे इस क्रिया को कभी भी नहीं करेंगे परंतु श्रावक की भूमिका में गृहस्थ धर्म के पालन में आरंभ आदि होता है। अतः कृषि आदि आरंभ की क्रियाएं भी होती है।

वर्तमान में गलत तरीकों से निकाले गए दूध की बात को universalise करना कहां तक सही है, विचारणीय है…।

इनमें अच्छा स्पष्टीकरण है -

प्रमत्त योग के साथ जीवों के प्राणों का घात करना द्रव्य हिंसा है।
दूध के संबंध में यह किस रूप में आप घटित करना सही है, पुनः विचार कीजिए।
बुद्धिपूर्वक जीवों के आरंभ (हिंसा) आदि की क्रियाएं 5वे गुण स्थान तक क्रमशः कम होती हुई होती है। उसमें भी कब कितनी हिंसा का त्याग रहता है, इसका पूरा विस्तृत वर्णन आप श्रावकाचार और श्रमणाचार के ग्रंथों में आपको प्राप्त होगा।

सर्वज्ञ वीतराग की वीतरागता की पोषक वाणी को आगम कहते है। यह चार अनुयोगो में विभक्त है।

आप रत्नकरण्ड श्रावकाचार, मोक्ष मार्ग प्रकाशक आदि ग्रंथ का स्वाध्याय करके इन विषयों के संबंध में बारीकी से जान सकते है।

प्रस्तुत विषय में काफी आगम और तर्क आदि से प्रमाण प्रस्तुत किए गए है, उनका पुनः अध्ययन करके पक्ष विपक्ष को परिपूर्णता में देखकर स्वयं निर्णय करें। एकांत पक्ष के द्वारा निर्णय ना करें।

5 Likes

मेरे द्वारा पशु दुध त्याग का निर्णय आगम विरुद्ध है में ऐसा नहीं मानती हूं। अभक्ष्य भक्षण हमेशा परिस्थितियों और वातावरण के according होता है।
न ही मेने किसी बिना तर्क यह निर्णय लिया है। सही है कि यह सबका अपना persoanl निर्णय होना चाहिए। में पंचिन्द्रीय जीव की हिंसा का कारण न बनु यह इसलिए है। जो प्रत्यक्ष प्रमाण दिखे उसे भी में आगम में देखु और सोचु यह मुझे सही नही लगता।

जितने भी लोग यह read कर रहे है और दुध सेवन करते है उनसे अनुरोध है कि उस गौशाला में जा कर देखे की किस तरह उस पशु को artificialy प्रेगनेंट किया जाता है ताकि वह हमेशा दूध देती रहे। अगर वह नर बच्चा देती है तो उसका क्या किया जाता है। क्यो उसके बच्चे को और उसे बांध कर रखा जाता है।
अगर आप इस तरह से प्राप्त दूध का सेवन कर रहे है तो वह कितना भी 48min। का रहे पंचेन्द्रिय हिंसा का कारण है और यह प्रत्यक्ष प्रमाण में कृपया आगम का उल्लेख न देखे।
हम सभी का उद्देश्य किसी प्राणी की रक्षा करना होना चाहिए

7 Likes

इसके संबंध में ऊपर चर्चा आपके विचारों की सहमति के रूप में ही है।

10 Likes

हर आहार की किर्या में शुच्छम हिंसा होती है इसलिये मुनि अपने निमित्त से बना आहार नहीं लेते इसलिये जिसका जितना हो सके त्याग होना चाहिये

2 Likes

10 Likes

:pray:t2:

=> गाय, भैंस आदि पशु-जीवों को एक ही जगह 24 × 7 खूंटे-रस्सी से बाँध कर रखना, उन्हें चलना-घूमना-दौड़ना-फिरना-उछलना आदि प्रत्येक पशु जीव के लिये भी आवश्यक शाररिक क्रियायें नहीं करते आना इसप्रकार का भयंकर बंधन का जीवन देना यह अनैतिक है और पीडात्मक भी है। …

=> बंधन का जीवन जी रहे किन्हीं भी जीवों की मानसिकता बहुत दुःखी (नकारात्मक) होती है … पशु जीव मूक होते है, वे बोल नहीं पाते के: मुझे खोलो, कुछ देर खुल्ला रखो, मुझे भी बाहर जाना है, घूमना-फिरना है आदि … मूक जीवों के बोलते नहीं आने की मजबूरी के कारण वे चुपचाप रस्सी-खूँटे का भयंकर बन्धनात्मक जीवन मजबूरन सहते है। इसप्रकार के जीवन के कारण उनके मन दुःखी होते है, कषाय-युक्त होते है। ऐसे जीवों का दूध आदि सेवन करनेवालों के साथ कुछ सकारात्मक नहीं हो सकता।
=> शरीर स्वास्थ, मन या बुद्धि का स्वास्थ्य किसी के लिये भी बन्धनात्मक दुःखी जीवन जी रहे पशु का दूध लाभदायक नहीं हो सकता।

*** सेवा भाव से गाय, भैंस आदि पशु पालते है / रखते है तो क्या उन पशु-जीवों को प्रतिदिन घूमना-चलना-फिरना-दौड़ना-उछलना आदि आवश्यक शरीर क्रियाओं को करने की व्यवस्था देना / होना यह भी अत्यंत जरूरी सेवा नहीं?! … चारा-पानी-छत-दवा देना ही पर्याप्त नहीं! … स्वतंत्रता प्रत्येक जीव का जन्म सिद्ध अधिकार है।

*** COVID19 के lockdown में सब मनुष्य परेशान है घरों के अंदर 24 × 7 रहना पड़ रहा है इसलिये। … वे पशु जीव कितने घोर परेशान रहते है जिन्हें रस्सी-खूंटे से बन्धा जीवन जीना पड़ता है एक छोटीसी जगह में। … कैदी का जीवन भी इसप्रकार के जीवन से अच्छा होता है, अपराध/गुन्हा करके भी Jail में भी बहुतांश कैदियों को एक ही जगह बंधे नहीं रहना पड़ता। …

*** बंधे गाय, भैंस आदि पशुओं को एक ही जगह खड़े रहना, वहीं बैठना, वही पेशाब करना, वही गोबर निकालना, वही सोना इतना भयंकर कैद बंधन का जीवन क्यों देते है कुछ मानव?! … किस अधिकार से देते है? … इसमें कोई सेवा भाव नहीं मात्र निर्दयता ही है?

*** I request Right of Freedom for All Animals specially Cows n Buffaloes … अपने रसना-इन्द्रिय के चोचले, शरीर के पोषण के लिये दूध प्राप्त करने हेतु गाय, भैंस आदि पंच-इंद्रिय जीवों को बन्धनात्मक जीवन नहीं देना ही दया है! …

🙏🏻🙏🏻🙏🏻
5 Likes

ऐसा कहा तो जा सकता है , परन्तु यह हमारा ही कर्तव्य है कि हमे देखना चाहिए कि हम दूध कहा से लाते है , वहां उन जानवरों को कैसे Treat किया जाता है ।
मैं ऐसे भी परिवारों को जानता हूँ , जो दूधवाले से बहुत नम्रता पूर्वक गायों से अच्छा सुलूक करने की गुजारिश करते हैं ,और उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है । हर परिवार के लिए आज के समय मे गाय-पालन संभव नही है। , परन्तु समाज इसमे जागरूक हो सकती है । वह चाहे , तो एकजुट होकर इस समस्या से मुक्त हो सकती है ।
:pray::pray::pray:

आपकी असहमति जायज़ है , इसलिए निवेदन है कि आप स्वयं भी कोई सुझाव/ alternate प्रेषित करें ।

3 Likes

ये सब बातें समझ में तो आती है, इस बात को स्वीकारने का मन भी करता है, कुछ समय पहले इस पर बहुत विचार किया था मैने, पर आगम में दूध का निषेध नहीं है।, क्या आप आगम की दृष्टि से इस बात को सिद्ध कर पाएंगे।।

2 Likes

:pray:t2: जय जिनेंद्र!
In my opinion पशु जन्य दूध, दही, घी आदि समस्त पदार्थों का जीव-दया, अहिंसा-पालन तथा रसना-इन्द्रिय संयम के भावों से त्याग करना उचित है (जरूरी भी है) । … हम स्वयं अनेक वर्षों से इसका अभ्यास कर रहे है। … कुछ साल गौ-शालाओं में (mainly Jain Cow-Shelters) अनुकूलता नुसार volunteer सेवा कार्य किया है, गौ-शालाओं का अनुभव भी पशु-दूध, दही आदि का त्याग करना ही पशु-जीवों के प्रति दया, करुणा, न्याय, नीति एवं अहिंसा है यही रहा है। … :pray:t2:

3 Likes