वर्तमान उपलब्ध आगम में अपना विवेक लगाकर के जैन-धर्म-दर्शन के अहिंसा सिद्धांत का तथा दया का पालन करने का निर्देश है। …
Statistical view से देखे तो वर्तमान में 130+ करोड़ की मानव आबादी के भारत देश में 20-25 करोड़ की संख्या में भी दूध देनेवाली गाय + भैंसे नहीं है। … Out of 130+ करोड़ जनसंख्या पशुजन्य दूध, दही, घी आदि का उपयोग करनेवाले भारतीय 80-100 करोड़ पकड़े तो भी Demand is way Too higher than supply units … तो फिर इतने बड़े प्रमाण में दूध प्राप्त कैसे होता है!? … दही, मक्खन, बटर, घी, छाछ, मावा, खोवा, पनीर, मिठाईयाँ, चॉकलेट बहुत बड़ी लिस्ट है दुग्धजन्य पदार्थों की इतना सारा दूध आता कहाँ से और कैसे है??? … उपलब्ध Supply Units के साथ अनैतिकता के बिना इतनी demand पूर्ण जो पाना संभव ही नहीं है यह समझना मुश्किल नहीं है। … गाय, भैंस इन जीवों पर बंधनात्मक जीवन के साथ-साथ अतिभार रोपण का जैन धर्म विपरीत कर्म हो रहा है इसमें बिल्कुल भी शंका नहीं।
दूध के निमित्त गाय, भैंस आदि पशु जीवों के साथ हो रही हिंसा, अन्याय, अत्याचार, अनीति स्पष्ट सामने है। … दया जैन धर्म का मूल है। अहिंसा परम धर्म है। … और अधिक आगम निर्देशों की आवश्यकता ही नहीं है।
गाय, भैंस का खुद होकर दूध झराना और उनके स्तनों को स्पर्श करके दूध निकालना यह अत्यंत भिन्न विषय है। अगर गाय, भैंस खुद होकर दूध झरावे (सूर्योदय के 48 मिनट बाद, सुर्यास्त के 48 मिनट पहले आदि जैनाचार नुसार) तो उसके उपयोग का सोच सकते है, इस प्रसंग में भी शरीर और रसना इन्द्रिय पुष्टि नहीं करनी सो दूध त्याग यही भाव-प्रयास श्रेष्ठ होगा। …
चावल का दूध, नारियल का दूध, बादाम का दूध, आक्रोड, सोया आदि का दूध घर पर बना सकते है जो जैन धर्म-दर्शन के पदार्थों के काल मर्यादा आदि नुसार अधिक शुद्ध, भक्ष्य पदार्थों में आता है। …