दूध भक्ष्य या अभक्ष्य

किसी प्राणी से दूध को प्राप्त करने में उसे प्रताड़ित किया जाए तो इसे रोकने हेतु दूध का त्याग अनुमोदनीय है, लेकिन क्या जैन दर्शन के अनुसार दूध अभक्ष्य है ? यदि है तो शास्त्र का प्रमाण देने का प्रयास अवश्य करें ।

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क्या पशु दुग्ध सेवन कि बात किसी प्राचीन ग्रंथ में आयी है??

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बहुत से तीर्थकरों का प्रथम आहार खीर के रूप में हुआ है।
आगम में भी दही को भक्ष्य पदार्थ की श्रेणी में रखा है। दही दूध का ही उत्पाद है, अतः उसे अभक्ष्य कहना आगम सम्मत तो नहीं लगता।

वर्तमान परिस्थितियों को देखकर दूध का त्याग उचित भी है, कारण कि न ही तो पशुओं की देखभाल सही तरीके से होती है, न ही उनके साथ उचित व्यवहार किया जाता है।

दूसरी बात ये कि गाय आदि पशुओं का जिनसे हमें दूध प्राप्त होता है, उनका अपने जाति के नर से संयोग होने पर गर्भवती होना एक प्रकृति के अनुकूल एवं सहज/उचित प्रक्रिया है। लेकिन आज इंजेक्शन आदि के माध्यम से अप्राकृतिक रूप से ही उन्हें गर्भवती बनाया जाता है। (इसकी विशेष जानकारी you tube आदि से प्राप्त की जा सकती है)

(यह तो विदित है ही कि बिना गर्भवती हुए दूध आदि का उत्पाद संभव नहीं है)

यदि हम अपने घरों में सम्यक प्रकार से गाय भैंस आदि का पालन करते हैं, एवं उचित प्रक्रिया के अनुसार दूध आदि का उत्पाद करते हैं तो उसे अभक्ष्य नहीं कहा जा सकता।

कुछ लोग गाय के दूध को मांसाहार के समकक्ष भी रखते हैं, किन्तु यह उचित प्रतीत नहीं होता, कारण कि मनुष्य बालक भी तो अपनी माँ का दुग्धपान करता है। तो उसे मांसाहार कहना कहाँ तक उचित होगा?

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@anubhav_jain @JainTanmay @Divya @jinesh @Mitali_Jain @Atmarthy_Samiksha

पशु दूध भक्ष्य है या दूध अभक्ष्य है इन दोनो बातो में किसीभी बात को प्रमाण करे ऐसा कोई रेफेरेंस चाहिए

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क्या वहाँ गाय/भैंस के दूध से बनी खीर से आहार हुआ है यह बात आयी है?

दही soya milk, peanuts इत्यादि से भी बनता है ,हो सकता है उसे भक्ष्य बताया गया हो। और दही शायद भक्ष्य नही होना चाहिए क्योंकि उसका formation ही bacteria से होता है। और जहाँ तक मेरी जानकारी है मुनिराज भी दही का सेवन नही करते।

बालक के जन्म के समय चूंकि कोई अन्य पदार्थ खाने के लिए नहीं दिया जा सकता और प्रकृति ही इस तरह है कि माँ के दुध में ही सम्पूर्ण पोषण होता है इसलिए वहीं दिया जाता है। किसी अन्य स्त्री से भी पोषण rare cases में करने की सलाह दी जाती है।

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इन प्रश्नों पर भी विचार करने योग्य है-*अहिंसक गोशाला के दूध के लिए मेरे विचार

  1. गोशाला अहिंसक हो सकती है पर मनुष्य के लिए पशु का दूध अहिंसक नहीं हो सकता.

  2. प्रत्येक स्तनपायी जीव के शरीर में कुदरती तौर पर बनने वाला दूध सिर्फ़ उसके बच्चे के लिए और उस नवजात बच्चे के लिए जिसकी मां मर चुकी है या जिस नवजात बच्चे की माँ के शरीर में किन्हीं कारण से दूध नहीं बन पा रहा है मात्र उसके लिए ही अहिंसक है.

3 विचार करना चाहिए कि थन पशु के निजी अंग हैं जिन्हें मनुष्य द्वारा मसल-मसल कर दूध निकालना हिंसा ही है. पशु को पीड़ा होती है. इसके अलावा पशु से छल पूर्वक या उसे बांधकर, उसके बच्चे को उससे दूर करके प्राप्त किया जाता है – यह भी हिंसा है.

  1. अगर दूध का सेवन करने वाले कहें कि पशु के शरीर में अतिरिक्त दूध बनता है तो उन्हें बताएं कि यह इंसान कि स्वार्थ आधारित कल्पना मात्र है. सभी मां के शरीर में अतिरिक्त दूध नहीं बनता. उदाहरण के तौर पर किसी मनुष्य माँ के स्तन में अधिक दूध बनता है तो उसे डाक्टर उन चीजों को खाने से मना करते हैं जिससे दूध अधिक बनता है या फिर हार्मोनल कारणों से बनता है तो अधिक दूध को निकालकर अलग करने की सलाह देते हैं. मनुष्य माँ के अतिरिक्त दूध को कोई साधु या परिवार के लोग नहीं पीते हैं न ही उसे बेचते हैं. ठीक इसी तरह अगर किसी पशु के थन में अधिक दूध बन रहा है तो गोशाला वालों से कहें कि उसके खान-पान में बदलाव करें या फिर अतिरिक दूध को निकाल कर गोशाळा के अन्य बछड़ों को पिला दें. जैसा कि आपने लिखा है कि गोशाला में 2500 पशु है जिसमें से सिर्फ़ 250 गाय ही दूध देती हैं.

6 जो भोजन करता है उसमें असंख्यात जीव मारे जाते हैं. जुगाली के समय भी थूक में असंख्यात जीव उत्पन्न हो कर पेट में मारे जाते हैं. पशु का पूरा शरीर हाड़-मांस. खून. मल-मूत्र आदि से बना है जो पूरी तरह अपवित्र ही. स्वस्थ पशु के एक मिली ग्राम दूध में 1000 जीवाणु हो सकते है तथा संक्रमित/बीमार पशु के एक मिली ग्राम दूध में लाखों जीवाणु हो सकते हैं. पशु के थन में दूध उसके रक्त से बनता है. मनुष्य के लिए पशु का दूध अहिंसक नहीं हो सकता.

  1. पशु दूध मनुष्य का आहार नहीं है.

  2. अगर दो-तीन साल की उम्र के बाद भी किसी मनुष्य/साधु के जीवन जीने/स्वास्थ के लिए दूध जरूरी होता तो उनकी मां के शरीर में पूरी उम्र दूध बनता रहता पर ऐसा होता नहीं है.

  3. अगर यह अहिंसक गोशाला है तो संचालकों से निवेदन करें कि माँ और बछड़े को अलग-अलग बांधकर नहीं रखें. हो सकता है कि वे कहें कि खुला छोड़ने पर बछड़ा अधिक दूध पी लेगा, परन्तु यह भी स्वार्थ आधारित एक गलत धारणा है. प्रत्येक पशु/पछीं को इतना विवेक तो कुदरती तौर पर मिला है कि उसे अपने बच्चे को कितना दूध पिलाना है.

Courtesy
Vipin Jain
Bhopal

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  1. दही के लिए शुद्ध जामन
    व्रत विधान सं./३४
    दही बाँधे कपडे माहीं, जब नीर न बूँद रहाहीं।
    तिहिं की दे बड़ी सुखाई राखे अति जतन कराई।।
    प्रासुक जल में धो लीजे, पयमाहीं जामन दोजे।
    मरयादा भाषी जेह, यह जावन सों लख लीजै।।
    अथवा रुपया गरमाई, डारे पयमें दधि थाई।
  1. दूध अभक्ष्य नहीं है
    सा.ध./२/१० पर उद्‌धृत फुटनोट-
    मांसं जीवशरीरं, जीवशरीर भवेन्न वा मांसम्‌।
    यद्वन्निम्बो वृक्षो, वृक्षस्तु भवेन्न वा निम्बः।९।
    शुद्धं दुग्धं न गोर्मांसं, वस्तुवै चित्र्यमेदृशम्‌।
    विषघ्नं रत्नमाहेयं विषं च विपदे यतः।१०।
    हेयं पलं पयः पेयं, समे सत्यपि कारणे।
    विषद्रोरायुषे पत्रं, मूलं तु मृतये मतम्‌।११।

जो जीव का शरीर है वह माँस है ऐसी तर्कसिद्ध व्याप्ति नहीं है, किन्तु जो माँस है वह अवश्य जीव का शरीर है ऐसी व्याप्ति है। जैसे जो वृक्ष है वह अवश्य नीम है ऐसी व्याप्ति नहीं अपितु जो नीम है वह अवश्य वृक्ष है ऐसी व्याप्ति है।९।
गाय का दूध तो शुद्ध है, माँस शुद्ध नहीं। जैसे -सर्प का रत्न तो विष का नाशक है किन्तु विष प्राणों का घातक है। यद्यपि मांस और दूध दोनों की उत्पत्ति गाय से है तथापि ऊपर के दृष्टान्त के अनुसार दूध ग्राह्य है मांस त्याज्य है। एक यह भी दृष्टान्त है कि - विष वृक्ष का पत्ता जीवनदाता वा जड़ मृत्युदायक है।११।

गोरस में दुग्धादिके त्याग का क्रम
क. पा. १/१, १३, १४/गा.११२/पृ. ११२/पृ.२५४
पयोव्रतो न दध्यत्ति न पयोऽत्ति दधिव्रतः।
अगोरसव्रतो नो चेत्‌ तस्मात्तत्त्वं त्रायत्मकम्‌।११२। =
जिसका केवल दूध पीने का नियम है वह दही नहीं खाता दूध ही पीता है, इसी प्रकार जिसका दही खाने का नियम है वह दूध नहीं पीता है और जिसके गोरस नहीं खाने का व्रत है, वह दूध और दही दोनों को नहीं खाता है। …।११२।

इस त्याग के क्रम से स्पष्ट है कि जब ग्रहण होगा तभी उसका क्रमपूर्वक त्याग होगा।

गाय एक पालतू पशु की श्रेणी में आती है। इसके स्तनों से जितना दूध उनके बछड़े को आवश्यक है उतना उसे पिलाया जाए, और शेष दूध का प्रयोग मानव करे तो इसके कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए। कारण कि ये इसी जाती के पशु हैं।

दूसरा चक्रवर्ती आदि की खीर कैसे बनती है, इसका वर्णन आप लोगों ने पढ़ा ही होगा। सो जब वे गाय के दूध की खीर खाते हैं तो यहाँ आपत्ति क्यों?

तीसरा यदि प्रत्येक कार्य मे हिंसा मात्र देखी जाए तो मकान में रहना, सब्जी, गेंहू आदि का सेवन करना, मंदिर में चावल आदि द्रव्य का प्रयोग करना, जल आदि से अभिषेक करना, यहाँ तक कि मंदिर आदि का निर्माण करवाना इत्यादि सभी कार्यों के निषेध का प्रसंग आएगा।

गाय को बंधन में रखना नैतिक दृष्टि के गलत है, किन्तु उसकी सेवा भावना से उसका पालन करना, उसकी यथोचित देखभाल करना इत्यादि बिंदु भी विचारणीय हैं।

शेष आगम प्रमाण के होने से समस्त बौद्धिक विचार निराधार ही हैं, एक तरह से चरित्र की खींचतान है।

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Please share link or pdf if available. Of whole Granth

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Not available, sorry.
Copied it from online source (jain dictionary)
http://jainkosh.org/wiki/भक्ष्याभक्ष्य

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इस उदाहरण को और elaborate करने की आवश्यकता है। जो example यहा दिया गया है वह एकेन्द्रिय जीव का है क्या पंचिन्द्रीय के से इसे संबंधित करना सही है। अगर हां तो जो लोग कहते है कि अंडा 2 प्रकार का होता है एक वह जिसमे जीव नही होता तो उसका सेवन करना सही हो जायेगा

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पालतु पशु की श्रेणी में उसे हमारे दद्वारा ही लाया गया है। हम उस पशु का ध्यान न रखें तो वह जीवित नहीं रहेगा यह विचार सही नहीं है क्योंकि अनेक ऐसी गाय है जो हमे roads पर जंगलो में दिख जाती है। और प्रतयेक जीव अपने जीवन को किसीपर depend न होने की योग्यता ले कर ही आता है। मनुष्य चुकी खुदको थोडा चतुर समझता है इसलिये यह मानने लगता है कि मेरे करने से ही उनका जीवन चल पायेगा।

यह एक example जैसे भी समझा जा सकता है कि चक्रवर्ती की ताकत बताने के लिए दिया है। और दूसरी बात क्या यह example किसी प्राचीन आचार्य द्वारा लिखे ग्रंथ में आया है।

सही है। इसलिए पंचिन्द्रीय हिंसा को सर्वप्रथम त्यागने के लिये कहा जा रहा है।

बिल्कुल सही। पर सेवा भाव उस पशु के लिए ही क्यों है जिससे हमें कुछ प्राप्त हो रहा है। इस प्रकार से क्या dog, cats, birds को घर मे रखना सही है?

मेरा यह मत है कि जो हमे बताया गया है कि गाय दूध देती है इसलिए हम सेवन करते है यह गलत है। गाय से दूध निकाला जाता है। स्वयं से देने में वह गोबर और मूत्र देती है, उसका उपयोग करना चाहे हम तो वह शायद सही हो सकता है

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Okay. I believe we should not accept everything that is written in the name of Jinvacahan because we don’t know whether it is correct or not. Aagam granth has a different meaning. New books we read which are written within a span of 100-200yrs can be something which are authors persoanl understanding . We should use our logics and should search for the reason.

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आप अण्डे और दूध को एक श्रेणी में कैसे रख सकते हैं?
क्या दूध में से बछड़े का जन्म होता है? लेकिन अंडे में से होता है। वह अपने आप मे जीव है, कितने भी भेद करें अंडे के, लेकिन उसे भक्ष्य नहीं कहा जा सकता।

आदिनाथ महाराज में असि, मसि ओर कृषि का उपदेश दिया था। अब कृषि में खेत जोतने आदि का कार्य बिना पालतू पशुओं के कैसे संभव रहा होगा?
आप बचाव के लिए कह सकती हैं कि उस समय के मनुष्य स्वयं ही खेत को जोतते होंगें। किन्तु यह तर्क सही नहीं है।
दूसरा ये कि फिर गाय और बैल आदि जितने भी पशु हैं उनका प्रकृति के साथ मेल कैसे बैठेगा?

यहाँ पर द्रव्यानुयोग का कथन उचित नहीं है। प्रकरण भिन्न होने से।

जो भी है, जैसा भी है, बस है। और चाहे इससे उनका बल बताया जाए या उनकी महानता। किन्तु यह अभक्ष्य की श्रेणी में नहीं हो सकता इतना तो सिध्द होता ही है।
और यदि प्राचीन ग्रंथों में न होता तो इसकी जानकारी हमें कैसे होती?

फिर क्या आप इन सभी निर्माण आदि कार्यों के निषेध में भी अपना पक्ष रखतीं हैं?

सभी के प्रति अनुकंपा का भाव होना चाहिए। माँसाहारी जानवरों को पालकर हम स्वयं दूषित होते हैं। कारण कि हमारे द्वारा पालन पोषण किये गए जानवर के द्वारा एक अन्य जानवर का भक्षण हुआ, सो इसमें हम भी निमित्त बने। इसलिए इन्हें पालने का निषेध है।

What you personally believe is not important, but what all is written in Jinvani is authentic.
We even don’t know about sumeru and other monuments, but just because jinvani gives us knowledge and information about them, we believe.

आगम के अनुसार विवेक उचित है, किन्तु विवेक के अनुसार तो आगम नहीं बदला जा सकता।

एक प्रमाण और प्राप्त हुआ है।

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[quote=“anubhav_jain, post:13, topic:2948”]
आप अण्डे और दूध को एक श्रेणी में कैसे रख सकते हैं?
क्या दूध में से बछड़े का जन्म होता है? लेकिन अंडे में से होता है। वह अपने आप मे जीव है, कितने भी भेद करें अंडे के, लेकिन उसे भक्ष्य नहीं कहा जा सकता

यह उदाहरण इसलिए दिया क्योंकि आपने कहा कि जीव का शरीर मांस होवे यह ज़रूरी नहीं है।
अगर आप थोड़ा search करेंगें तो आपको पता चलेगा कि egg 2 type के होते हैं। मुर्गी कि अण्डे देने की प्रकिया में एक स्वयं ही होते है जिसमे यह ability नहीं होती के उससे नई मुर्गी का जन्म हो। तो आपके उदाहरण से यह सिद्ध हो जायेगा कि वह egg खाने वाले सही है जबकि ऐसा नही है।

पालतु पशु के शरीर से आहार प्राप्त करने की बात भी कही गयी थी क्या?

प्राचीन ग्रंथों से आपका क्या तात्पर्य है? और किस किस ग्रंथ में चक्रवर्ती के पशु दुग्ध पान की बात आई है? और कैसे यह सिद्ध हुआ कि अभक्ष्य नहीं है।

मैं minimum हिंसा को सही मानती हूँ। अगर में एकइन्द्री जीवो को बचाने के लिए जमीकंद नही खाती तो यह ज़रूरी है कि पंचेंद्रिय जीवो का घात मेरे द्वारा न हो।

प्रकृति भले मांसाहारी हो पर शाकाहारी बना कर भी रखा जा सकता है और मेरे पास इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। जब ऋषभ देव ने कृषि के लिए पालतु पशुओ की बात कही उस समय और आज के समय मे बहुत अंतर है। वो पशु थे इसलिए उनसे कृषि के लिए उपयोग में लाने का बताया गया, कृषि करनी थी इसलिए इस प्रकार के पशुओ का जन्म हुआ है ऐसा तो नही है, इससे यह सिद्ध होता है कि हमारे न पालने पर भी उनका जीवन यापन सम्भव है। सिर्फ हमारे दूध के प्रति आसक्ती के लिए हम उन्हें पाले और कहे की हमारे पाले बिना उनका जीवन नही है तो यह तर्क सही नहीं है।

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What is the definition of jinvani? If I become a scholar and teach Jainism for few years and write something wrong in a book in the name that jinendra dev said this m not saying and someone reads that after 100years and start believing it to be true than. We should use logics and reasoning. And also check by whom it is written.

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Because It can not be proved and what we are discussing can be proved. Believing in sumeru parvats existence is not causing reason of hinsa but believing that tirthankar also had animal milk is the reason of panchendriya hinsa.

[quote=“anubhav_jain, post:13, topic:2948”]
एक प्रमाण और प्राप्त हुआ है।

यहाँ कहा पर यह उल्लेख है कि पशु दूध से सल्लेखना करना है। दूध और छाछ soya, almond, coconut, cashew इत्यादि से भी बनती है।

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That is what I would like to tell you, all the rationalist could not be true, the same as you are trying to be.

Of course we should. But when their is extensive excavation already done, than why to excavate it again?

That is what I’m saying.

To drink milk is panchendriye himsa? What’s the proof?

उन्हें भी फिर क्यों ही खाना? क्योंकि बात तो हिंसा की हो रही है। और खेत जोतते समय अनेकों पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा होती है।

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दूध आदि को गौरस भी कहा जाता है। जबकि सोया दूध आदि को गौरस नहीं कहा जा सकता है। मुझे नहीं लगता कि तब जब हर घर में गौधन उपलब्ध थे, सोया आदि के दूध उपलब्ध / प्रचलित थे। ये तो वर्तमान की खोज है क्यूंकि मांग के अनुरूप पर्याप्त दूध की उपलबधता नहीं है। (Necessity is the mother of all inventions)

I agree with this point.
आटे के मुर्गे की कहानी आपने सुनी ही होगी। उसमें भी बराबर दोष लगता है।

My personal views on this topic in some segregated points-

  • If you would have listen the critics of vegan movement (specifically against the argument that even drinking milk qualifies you as non-vegetarian), they say that this was a part of a big propaganda narrative by foreign capitalists and global-corporations to add a large chunk of population under the tag of non-vegetarian. And leading to more and more popularity of meat-egg and their products. And the best way was to bring the educated and young Indians on their side against the traditional beliefs of the India with half-true facts and pseudo-logics.
  • I think the vegan movement which primarily began in foreign countries (against the atrocities towards all types of animals by the capitalist economy) were of this view that even milk is animal product so it should not be accepted by vegetarians.
  • जैन चरणानुयोग के अनुसार दूध आदि की मर्यादा बताई गई है। दूध निकालने के अंतर मुहूर्त के अंदर उसको उबालकर उसकी मर्यादा बढ़ाने का भी नियम है। इसी प्रकार दही घी आदि के बनाने और उनकी मर्यादा की भी पर्याप्त जानकारी चरणानुयोग के ग्रंथों में प्राप्त होती है।
  • Laboratory में जिस दूध दही का परीक्षण किया जाता है, वो तो स्वयं ही मर्यादा के बाहर का ही होता है। बाज़ार के दूध दही के संबंध में भी इसके संबंध में समझ लेना चाहिए।
  • पहले के समय में दूध दही छांछ आदि सर्वोत्तम आहार और घर घर में गाय आदि के होने के कारण सुलभता से उपलब्ध भी होता था। गाय आदि को प्राय परिवार के अंग जैसा ही प्रेम मिलता था और देखभाल भी उसी अनुरूप होती थी।
  • वर्तमान परिस्थितियों में आप दूध का सेवन करते है या अन्य विकल्पों को देखते हुए नहीं करते है, ये आपकी पर्सनल और व्यक्तिगत राय है, परंतु आगम की मर्यादा में रहते हुए दूध आदि की प्राप्ति के द्वारा शुद्ध सात्विक जीवन यापन करने वालों पर प्रश्न चिन्ह लगाना योग्य नहीं है।
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ये मत कहियेगा कि विद्वान अप्रामाणिक हैं। अथवा इनके ये मौलिक विचार होंगे।

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आपने दूध का उदाहरण दिया संलेखना के लिए इसलिए यह बात आयी और रही बात खेती में पंचिन्द्रीय हिंसा की तो यह तर्क non jains भी देते हैं। सही है कि कम से कम होना चाहिए हिंसा पर जो विधित हो जाय उसे भी न छोड़ कर दूसरे जिसका ज्ञान न हो उसे छोड़ने की बात क्यों करे?

शास्त्र का नाम और विद्वान का, या link हो तो वह शेयर कर दे।

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