दूध भक्ष्य या अभक्ष्य

अभी थोड़ी देर के लिए यदि हम सभी अपने हठ एक तरफ रख कर विचार करें तो निम्न बिन्दु ख्याल में आएंगे।

  1. जिनवाणी में गोरस की मर्यादा बताई गई है।
  2. अनेक स्थानों पर तीर्थंकरों के द्वारा गोरस से बनी हुई खीर का प्रथम आहार हुआ है।
  3. दही की मर्यादा का वर्णन भी आगम में आया है।
  4. आगम प्रमाण भी प्रस्तुत किये जा चुके हैं।
  5. लोक व्यवहार की दृष्टि से भी गाय का दूध दोहन करना किसी जीव की हत्या, अथवा उसे बहुत अधिक कष्ट पहुँचाने के समान नहीं है।
  6. सोया आदि के दूध की चर्चा का मुद्दा यदि सही है, तो इसके संबंध में आगम प्रमाण कहाँ हैं? चाहे पुराने आचार्यों के अथवा पिछले 700 साल के।
  7. क्या तीर्थंकर के ज्ञान में कभी उपर्युक्त तर्क ज्ञान में नहीं आये होंगे?
  8. क्या तीर्थंकर के समय मे गाय अपने आप अपना दूध दुह कर दे देती होगी?
  9. मुनिराज आदि भी दूध का सेवन करते हैं। तो क्या उन्हें भी आर्ष परंपरा से कभी इसके संबंध में विवादित प्रमाण नहीं मिले?
  10. क्या आज का विज्ञान तीर्थंकर के ज्ञान से भी अधिक सूक्ष्म है?
  11. यदि दूध के संबंध में हिंसा का दोष सम्मिलित किया जा रहा है, तो अन्य आरम्भ आदि के कार्य भी नहीं करने चाहिए।
  12. समस्त प्रकार की हिंसा से बचने का प्रयास यदि प्रत्येक भूमिका वाला करेगा तो निष्क्रिय होने का दोष आ जावेगा। ।
  13. वेगन जो कार्य कर रहे हैं, वह निंदनीय नहीं है, किन्तु जहाँ पर आगम हमे सम्मति देता हो, और जहाँ अन्य तर्क भी किसी भी प्रकार से दोष को प्राप्त होते हों, वहाँ आगम की आज्ञा शिरोधार्य होना चाहिए।
  14. क्या सोया बादाम आदि से घी आदि का उत्पादन भी संभव है?
  15. यदि घी आदि का उत्पादन सम्भव है, और हम उसे भक्ष्य बताते हैं, तो आने वाले समय मे कोई सामाजिक समुदाय विशेष पेड़ पौधों के द्वारा उत्पन्न खाद्यान को भी हिंसक बतावेगा। तो उस समय हमारे पास क्या उपाय होगा?
  16. हिंसा आदि तो प्रत्यक्ष जिन मंदिर के निर्माण, मुनि आदि के भोजन, सामान्य जीवन यापन में भी है, जिनको रोकना संभव है, तो क्या उन पर भी प्रतिबंध होना चाहिए?
  17. स्त्री पुरुष के संसर्ग के समय भी पुरुष के वीर्य से असंख्यात जीवों का निकलना एवं उनका मरण होता है, तो क्या इस बंद हो सकने वाली हिंसा पर भी प्रतिबंध लगाकर अहिंसक जीवन श्रावक भूमिका में भी पूर्ण रूप से पालने योग्य नियम बना देने चाहिए?
  18. क्या मर्यादा के भीतर की हिंसा भी श्रावक की भूमिका में निषिद्ध है? तो फिर उद्योगी हिंसा और विरोधी हिंसा की छूट आगम में क्यों दी?
  19. यदि गाय का दूध निकाल कर मनुष्य उसका पान करता तो हिंसा का दोष आता है, क्योंकि यह कार्य हिंसात्मक है। तो फिर इस तरह जन सामान्य के बीच होने वाला व्यापार, धन आदि का लेन देन भी तो प्रकृति के विरुद्ध सिद्ध होगा। तब लोक व्यवहार का पालन कैसे संभव रहेगा?
  20. त्यागी व्रतियों को दूध दही के प्रति अत्यंत राग है इसलिए वे उसे आगमसम्मत और जिनआज्ञा के नाम पर ग्रंथों में लिख कर चले गए। यदि ऐसा व्यक्तिगत मानना हो तो इसका उपाय तो अन्य कुछ नहीं दिखता।
  21. जिस ग्रंथ में प्रयोजन भूत तत्वों का वर्णन सही हो, उसमे अन्य अनुयोग का वर्णन भी सही होगा। जिसमें प्रयोजन भूत तत्त्वों का वर्णन गलत हो उसमे अन्य वर्णन सही होने पर भी मिथ्या है। कुछ इस तरह की चर्चा मोक्षमार्ग प्रकाशक जी मे आयी है।
  22. यदि बौद्धिक विचारों के चिंतन मात्र से जिनागम की परीक्षा की जाए, तो प्रश्न ये है कि कुन्दकुन्द आचार्य ने सब कुछ सही लिखा है इसका क्या प्रमाण है? समन्तभद्र आचार्य ने सब कुछ सही लिखा है इसका क्या प्रमाण है?
  23. क्या प्राकृत/संस्कृत के ग्रंथ जो आज से 1200 या इससे भी अधिक पूर्व में लिखे गए हो वे ही प्रामाणिक हैं?
  24. यदि हाँ तो श्वेताम्बर मत के ग्रंथ भी अत्यंत प्राचीन हैं। उन्हें भी योग्य मान लेना चाहिए।
  25. जहाँ बहुधा ज्ञानियों के मत एक हों उसे प्रामाणिक स्वीकार करना योग्य है, हठ पूर्वक अपनी बात को सिद्ध करना जिनआज्ञा का अवर्णवाद ही है।

शेष आप विचार करें। और हो सके तो इस विषय को यही विराम दें।
आगम प्रमाण मिलने के बाद भी आपकी सहमति होगी ही इसका भी कोई प्रमाण नहीं है, क्योंकि यह विषय आगम का न होकर व्यक्तिगत श्रद्धा का हो गया है।

क्षमा।

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