मैने बचपन से दही का त्याग करा हुआ था क्यूंकि वो बैक्टेरिया से बनती है । शादी के बाद मैंने 25 साल बाद दही का भक्षण किया । जब ब्रह्मचारी कल्पना दीदी ने बताया कि वो अभक्ष्य नहीं है भक्ष्य है और अगर हम उस अभक्षय जान कर छोड़ेगे तो उसमें देव शास्त्र गुरु का अवर्णवाद है।
एक बार वैज्ञानिको की तरफ़ से यह प्रश्न उठाया गया कि जैनी आहिंसक बनते हैं और दही खाते है। तब आ० फूलचन्द सिद्धांत शास्त्री जैन विधी से जमाई दही लेकर लैब में गए वहाँ जैन विधी से जमाई दही और जामन से जमाई दही दोनों की testing हुई । जैन विधि से जमाई दही में बिल्कुल भी bacterias नहीं पाए गए । और दूसरी दही में चलते फिरते बैक्टेरिया मिले ।
और रही बात दूध कि तो दूध अभ्क्ष्य नहीं है पर अगर जानवरों को पीड़ा देकर निकाला जाता है तो अभक्ष्य है। बछडे के पीने के बाद जितना दूध निकलता है उसमें कोई दोष नहीं है। 24 में से 23 तीर्थंकर ने भी प्रथम पारणा दूध से बनी खीर से ही की । दूध ,दही ,पनीर की जिनागम में मर्यादा बताई है इससे ही पता चलता है कि मर्यादा के अंदर अंदर सब भक्ष्य है , पर मर्यादा के बाहर सब अभक्ष्य है
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