दीक्षा के संबंध मे।

द्रव्यलिंगी का अर्थ मात्र ‘प्रथम गुणस्थानवर्ती मुनिराज’ - ऐसा तो है नहीं । चतुर्थ एवं पंचम गुणस्थान में भी जो मुनिराज है, वे द्रव्यलिंगी है, और ऐसा होने पर भी साधु संज्ञा को प्राप्त है, क्योंकि भावलिंग सब के ज्ञान का विषय नहीं । और उसके अनुसार पूज्यत्व का व्यवहार संभव नहीं ।

गुणस्थान एवं चरणानुयोग - दोनों की अपेक्षा पहले द्रव्यलिंग होगा, पश्चात् भावलिंग ।

शेष चर्चा यहाँ हुई है - द्रव्यलिंगी (भावलिंगी) मुनि | Dravyalingi (Bhavlingi) Monk/Muni - #5 by jinesh

और यहाँ भी - द्रव्यलिंगी मुनि सारे दिन किसका ध्यान करते होंगे?

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