दीक्षा के संबंध मे।

यदि अभी इस काल मे कोई 28 मुलगुणो का सूक्ष्म रूप से पालन करने वाले मुनि भगवन्त नही होते तो यदि किसी मुमुक्षु को दिक्षा लेनी हो तो वह कैसे लेगा?

जब कोई मुनि नहीं हो तो, जिन प्रतिमा के समक्ष भी दीक्षा लेने का आगम उल्लेख है ।

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कृप्या। आगम का नामोल्लेख कर सकते है।


जैन श्रमण और समीक्षा डॉ योगेश जी द्वारा लिखित ।

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Deksha to kisi se bhi li ja sakti hai palan to swaym ko karna hai

ऐसा ही प्रश्न मैंने पंडित सुमतप्रकाश जी से पूछा था। उन्होंने कम शब्दों में बहुत ही संतुष्टिजनक उत्तर दिया था।
वह कुछ इसप्रकार था-

जब तीन कषाय चौकड़ी का अभाव होना होगा, तब वैसे निमित्त अपने आप ही आ मिलेंगे।

अब इसे हम अपने चिंतन के आधर से समझ सकते हैं। जैसे महावीर के जीव को शेर की पर्याय में सम्यकदर्शन होना था सो निमित्त आकाश से उतर कर आये थे।
जब वहाँ ऐसा संभव है तो यहाँ भी उचित निमित्त स्वतः ही प्राप्त होंगें।

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तो क्या नियति पर सब छोड़ दे

कुछ कर सकते हों तो करके देखलें।

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तो deekcha कोई लेता है या होनी होती सो होती है फिर तो यह बात हर कार्य पर लागू होनी चाहिये

होनी तो चाहिए।

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फिर तो सारे उपदेश निरर्थक हो जाये गे

पहले सारे उपदेशों का अपेक्षानुसार अनुसरण करके देखें।
उत्तर अपने आप मिल जाएगा।

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कुछ स्पष्ट करे की क्रम क्या हो

आपने पंडित सुमतप्रकाश जी से प्रश्न पुरुषार्थ समवाय को मुख्य करके किया था लेकिन उत्तर नियति समवाय को मुख्य करके मिला और आप संतुष्ट हो गए।

हाँ जी।

फिर तो यह वर्तमान में सभी मुनियों पर लागू होना चाहिए जो कि संभव नहीं।

जब उन सबके तीन कषाय चौकड़ी का अभाव हुआ होगा, तब उनको दीक्षा लेने के निमित्त अपने आप ही आ मिलें होंगे‌।

अगर तीन कषाय चौकड़ी का अभाव होगा तो जीव विपरीत परिस्थितियों में भी अङग रहेगा,28 मूलगुण आदि का अखंड पालन सहज ता में ही पलेगा, जीव को शुद्धोपयोग पूर्वक आत्मा की अनुभूति सहजता में ही होगी।

यह एक आदर्श राज मार्ग है।

बाकी तो भ्रष्ट मुनिभि भाव लिंगी हो कर उसी भव में मोक्ष जा सकते है।
परंतु यह अनुकरणीय मार्ग नही है।

चरणानुयोग के अनुसार

स्म्यक्त्व प्राप्त करके , गुणव्रत, शिक्षाव्रत, आदि धारण करके ,11 प्रतिमा का अखंड रूप से पालन होने बाद मुनिधर्म का अभ्यास करके दीक्षा लेनी चाहिए।

भावुकता में दीक्षा लेने से शुद्धोपयोग और 28 मूलगुण के पालन की बात तो दूर रही , धर्म की अप्रभवना के अलावा कुछ भी नही होता।

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अरे भाई। व्यर्थ के तर्क क्यों प्रस्तुत करते हो? ऊपर सभी शंकाओं का समाधान दिया तो जा चुका है। पुनः सभी पर टीका टिप्पणी करने से क्या लाभ?

चरणानुयोग के अनुसार

स्म्यक्त्व प्राप्त करके , गुणव्रत, शिक्षाव्रत, आदि धारण करके ,11 प्रतिमा का अखंड रूप से पालन होने बाद मुनिधर्म का अभ्यास करके दीक्षा लेनी चाहिए।
यह किस शास्त्र का प्रमाण है

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