दीक्षा के संबंध मे।

भाई, आपने गुणस्थान पढ़ा है
उसमे पहले 4 था सम्यक्त्व,5 व अणुव्रत,6 वा मुनिधर्म और फिर आगे यही क्रम है।
आप रत्नाकरण्ड श्रावकाचार का index देख लीजिए, हमे आचार्यो के भाव को हमे समझना चाहिए।

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ये क्रम सही है गुण स्थान की अपेक्छा से
लेकिन द्रव्यलिंगी साधु का यह क्रम कैसे बनेगा
और किसी गाथा या श्लोक का प्रमाण दे
और मूलाचार में आता है पहले deekcha और बाद में shikcha और बिना sikcha के भेद विज्ञान कैसे होगा

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जिनागम में स्याद्वाद शैली है प्रत्येक जगह पर अपेक्षा कृत कथन है । कथन के भाव को समझने का प्रयास कीजिये।

द्रव्यलिंगी का अर्थ मात्र ‘प्रथम गुणस्थानवर्ती मुनिराज’ - ऐसा तो है नहीं । चतुर्थ एवं पंचम गुणस्थान में भी जो मुनिराज है, वे द्रव्यलिंगी है, और ऐसा होने पर भी साधु संज्ञा को प्राप्त है, क्योंकि भावलिंग सब के ज्ञान का विषय नहीं । और उसके अनुसार पूज्यत्व का व्यवहार संभव नहीं ।

गुणस्थान एवं चरणानुयोग - दोनों की अपेक्षा पहले द्रव्यलिंग होगा, पश्चात् भावलिंग ।

शेष चर्चा यहाँ हुई है - द्रव्यलिंगी (भावलिंगी) मुनि | Dravyalingi (Bhavlingi) Monk/Muni - #5 by jinesh

और यहाँ भी - द्रव्यलिंगी मुनि सारे दिन किसका ध्यान करते होंगे?

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प्रश्न ये बनता है कि यदि कोई दीक्षा लेता है तो उसकी तीन चौकड़ी समाप्त हुई माना जाये या उसके वैसी काल लब्धि थी तो उसकी दीक्षा हुई
तो जो दीक्षा होती है उसमें मुख्यता किसकी है
और जो मुनि है उसका कोनसा गुण स्थान माना जाये

तीन चौकड़ी कषाय सामान्य मति श्रुत ज्ञानी नही जान सकते।
यह केवलज्ञान गोचर विषय है।जीव कोनसे गुणस्थान में है यह हम नही जान सकते ।
हमे मात्र चरणानुयोग की अपेक्षा से 28 मूलगुण,32 अंतराय आदि का अखंड रूप से पालन हो रहा है तो हमे नमस्कार करना चाहिए।
रही बात काल लब्धि की कोई भी कार्य बिना काल लब्धि के नही होता।

दीक्षा में क्रिया संबधित में मुख्यतः चरणानुयोग का और वैराग्य आदि के भाव वह द्रव्यानुयोगविषय है।

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