लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

देश भक्ति

कॉलेज के समीप एक विधवा स्त्री रहती थी। उसके पति तथा पुत्र शत्रुओं के आक्रमण करने पर देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गये थे। देशभक्ति उसके हृदय में भी कूट-कूट कर भरी हुई थी।
घर बड़ा था। उसने घर पर गायें पाल रखी थीं। दूध बेचकर,संतोष-पूर्वक वह अपनी आजीविका चला रही थी। घर के कमरे में कुछ छात्र बाहर से आकर किराये पर रह लेते थे। उनका भोजन भी वह स्वयं एवं अपने ही पड़ोस के सद्गृहस्थ के सहयोग से बना देती थी।
एक बार एक छात्र ने उससे कहा- “माँ !आपको आर्थिक परेशानी रहती है, उसका एक सरल उपाय है कि आप दस लीटर दूध में एक लीटर पानी मिला दिया करें।”
वह स्त्री उसे धिक्कारते हुए बोली- “मेरा कमरा खाली करके अभी चले जाओ। मुझे ऐसा धन नहीं चाहिए। मैं अपने नगरवासियों के साथ विश्वासघात नहीं कर सकती। ऐसी खोटी सलाह देने का तुम्हें साहस कैसे हुआ ? दया दिखाने के नाम पर तुम मुझे बेईमानी सिखाते हो। तुम ऐसी शिक्षा ग्रहण कर रहे हो ! धिक्कार है तुम्हारी बुद्धि को।”
छात्र ने पैर पकड़ते हुए क्षमा माँगी और भविष्य में कहीं और कभी बेईमानी न करने की प्रतिज्ञा की। तभी उस महिला ने उसे वहाँ रहने दिया।
घर आने पर पिताजी एवं अन्य लोगों को यह घटना अत्यन्त गौरव से बताई और एक प्रेरक प्रसंग लिख कर उसे प्रकाशित एवं प्रसारित भी कराया।

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