लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

महामहिम शुद्धात्मा

गुरुकुल में अपनी शिक्षा पूर्ण करके घर आये हुए पुत्र की योग्यता को देखकर पिताजी अत्यन्त प्रसन्न हुए, परन्तु अभिमान को देखकर दुःखी।
उन्होंने पुत्र से कहा- “बेटा !उसका नाम बताओ,जिसके जानने पर अन्य कुछ जानने की आवश्यकता नहीं रहती और जिसके ज्ञान से ही सर्व का ज्ञान हो जाता है।”
पुत्र- “पिताजी !ऐसी तो कोई वस्तु नहीं है।”
पिता- “बेटा !वह निज शुद्धात्मा है,जिसके जानने पर ऐसी तृप्ति होती है कि अन्य वस्तु को जानने की अभिलाषा ही नहीं रहती। निजात्मा की आराधना के फल से ही जीव स्वयं वीतराग,सर्वज्ञ और अनन्त सुखी परमात्मा बन जाता है।”
पुत्र को अपने आत्मज्ञान से रहित ज्ञान की असारता भासित हुई। उसका अभिमान गल गया और वह लग गया अध्यात्म के अभ्यास में,आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए।

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