लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

मधुर वचन

यशोवर्द्धन एक निर्धन,बेरोजगार,परन्तु सरल स्वभावी युवक था। वह नौकरी के लिए राजा के यहाँ गया। यद्यपि राजा को आवश्यकता नहीं थी, फिर भी उसकी सरलता और बातचीत के ढंग से प्रभावित होकर उसे रख लिया और स्वयं को पानी पिलाने का कार्य सौंपा। वह भी अत्यन्त निष्ठापूर्वक अपना कार्य करने लगा। एक बार राजा बाहर भ्रमण के लिए गया। रास्ते में पानी समाप्त हो गया। वह पानी के लिए शीघ्रता से आगे चलता हुआ एक गाँव में पहुँचा। लोगों ने बताया यहाँ एक मीठे पानी की बावड़ी है, परन्तु वहाँ एक राक्षस रहता है और वहाँ से कोई जीवित नहीं लौटता। इष्ट का स्मरण करता हुआ युवक मृत्यु की परवाह न करता हुआ वहाँ पहुँचा। उसने स्वयं पानी पिया और कलश में पानी लेकर चलने लगा। तभी वह राक्षस हाथ में एक टेड़ी,लम्बी,लटकती हुई लकड़ी दिखाकर बोला- “पहले यह बताओ कि मेरे हाथ में यह शस्त्र कैसा लग रहा है ?”
यशोवर्द्धन- “राक्षस देव !अत्यन्त सुन्दर। इसे मैं इन्द्र का वज्र कहूँ या भीम का गदा, इसके लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।”
राक्षस प्रसन्न होता हुआ बोला- “तुम्हारे मिष्ट वचनों से मैं अत्यन्त प्रभावित हूँ। तुम पानी तो ले ही जाओ,एक वरदान भी माँग लो।”
युवक ने कहा- “गाँव में पानी के लिए लोग परेशान होते हैं। आप किसी को पानी के लिए रोंके नहीं,ऐसा मेरा विनम्र निवेदन है।”
राक्षस-" क्या कहूँ ?यह प्रश्न मैं सबसे करता हूँ परन्तु उनके कटु उत्तर से मेरा चित्त खिन्न हो जाता है। अब मैं किसी को नहीं रोकूँगा। तुम्हें कभी कोई आपत्ति आये तो स्मरण करना।"
यशोवर्द्धन ने गाँव में आकर सबसे कहा_ “अब पानी सबको मिलेगा,परन्तु कठोर अपशब्दों को बोलने का सभी त्याग करें।”
गाँव वाले प्रसन्न हुए। वे उससे भोजन का आग्रह करने लगे,परन्तु कर्त्तव्यनिष्ठ उस युवक ने शीघ्रता से जाकर सर्व प्रथम राजा को जल पिलाया।
राजा ने समस्त घटना को सुन कर उसकी अत्यन्त प्रशंसा की और उसे अपना अन्तरंग सलाहकार बना लिया।

4 Likes