वैराग्य का धन संग ले अपार, सुख शान्ति का करने व्यापार।
शिव पंथचारी हैं हमारे मुनिवर, दिगंबर धारी हैं हमारे मुनिवर।।टेक।।
बाह्य आभूषण तज के,ध्यान आभूषण निज उर में धारा।
काँच के रत्न छोड़े, त्रय रत्नों से हुए निर्भारा।।
ज्ञान के आहारी, स्वपर हितकारी हैं , हमारे मुनिवर।।१।।
अशुभोपयोग को नाशा, शुभ उपयोग पगड़ी है धारी।
आत्म उपवन में विचरते, शुद्ध उपयोग रूपी है गाडी।।
शिवरमणी वरना है, धर्म प्रभावक सारथि हैं, हमारे मुनिवर।।२।।
चक्री इन्द्रादिक नमते, पर वे तो बस निज में ही रमते।
उपसर्ग परीषह सहते, मात्र ज्ञायक हैं ज्ञायक ही रहते।।
सिद्धों के लघुनंदन, वंदन शत बारे हैं, हमारे मुनिवर।।३।।