परिणाम निर्मल सब सहज स्वीकार करने से ही होंगे

समता रस धन प्राप्त कर ।
ध्याऊँ आतम राम ॥
सहज करूं स्वीकार सब ।
निर्मल हों परिणाम ॥

निज आतम भक्ति करूँ, निज आतम लवलीन ।
करूँ परम पुरुषार्थ प्रभु, होंए कर्म सब छीन ॥