परमातमा और निजआतमा जग में दो ही शरण हैं ।

जग में रुला बहुत भरमाया ।
सुख किंचित नहीं दुःख ही पाया ॥
अब मैं तिसकी शरण में आया ।
जिसने सुख का मार्ग बताया ॥

तू है ज्ञानी ज्ञान स्वभावी ।
ज्ञान पिंड ज्ञाननंद खान ॥
शेष है किंतु एक कार्य ।
निश्चय कर तू है प्रभु समान ॥