धर्म ध्यान ही करने में मनुष्य जन्म की सार्थकता है

कर चिंतवन तू ध्यान कर ।
सुद्घात्म रस का पान कर ॥
कर पूण निश्‍चय ज्ञान कर ।
तू स्वयं को प्रभु मान कर ॥