क्रोध किसी पर करूँ कभी न |
मान कभी न दिखलाऊँ ||
मायाचारी छोड़ छलकपट |
निर्लोभी मैं बन जाऊँ ||
सब जीवों की दया पालकर
हिंसादिक को छोड़ो तुम ॥
संसारी की दशा जानकर
निज में दृष्टि मोड़ो तुम ॥
हिंसा छोड अहिंसक पथ पे
सतत निरंतर बढ़ता जाऊँ ॥
सत्य कहुँ अरु सत्य सुनूँ बस
सत्य राह पर चलता जाऊँ ॥
पर धन की अभीलासा ना हो
सहज भाव संतोष जगाऊँ ॥
रहुँ ब्रह्ममय ब्रह्मचर्य से
बस नित यही भावना भाऊँ ॥
देह मात्र का परिग्रह तजकर
सिद्ध समान स्वयं बन जाऊँ ॥
: - by तन्मय जैन
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