तत्त्व चिंतन tatva chintan

जो आतमा को जानकर ,
पहचानकर करते रमण ॥
उनको मिले पंचम गती
उनका मिटे चहु गती भ्रमण ॥

जानने और पहिचानने में क्या अंतर है?

पहचानने में जो गहराई है वह जानने में कहां ।
जानना सामान्य जानकारी है और पहचानने में श्रद्धा भी शामिल है वस्तुतः सम्यक श्रद्धा ही सच्ची पहचान है

:- डॉ० हुकुमचंद भारिल्ल
सत्य की खोज

निज आत्म का चिंत्वन करो ।
शुभ शास्त्र का मंथन करो ॥
तुम आत्मा को ही आत्म द्वारा ।
आत्मय निर्मल करो ॥

आत्म की आराधना कर
मोक्ष में जाऊँ प्रभू ॥
बस आत्म में ही आत्म द्वारा
समा जाउँ हे प्रभु ॥