रोम-रोम से निकले प्रभुवर नाम तुम्हारा, हाँ! नाम तुम्हारा |
ऐसी भक्ति करूँ प्रभुजी, पाऊं न जनम दुबारा ||टेक||
जिनमंदिर में आया, जिनवर दर्शन पाया |
अन्तर्मुख मुद्रा को देखा, आतम दर्शन पाया |
जनम-जनम तक न भूलूँँगा, यह उपकार तुम्हारा ||(1)
अरहंतों को जाना, आतम को पहिचाना |
द्रव्य और गुण पर्यायों से, जिन सम निज को माना |
भेदज्ञान ही महामंत्र है, मोह तिमिर क्षयकारा ||(2)
पञ्च महाव्रत धारूँँ, समिति गुप्ति अपनाऊँ |
निर्ग्रन्थों के पथ पर चलकर, मोक्ष महल में आऊँ |
पुण्य-पाप की बंध श्रृंखला, नष्ट करूँ दुःखकारा ||(3)
देव-शास्त्र-गुरु मेरे, हैं सच्चे हितकारी |
सहज शुद्ध चैतन्यराज की महिमा, जग से न्यारी |
भेदज्ञान बिन नहीं मिलेगा, भव का कभी किनारा ||(4)