(तर्ज- सोनागिर में पंचकल्याणक …)
प्रभुता प्रभु की मंगलकारी,मंगलकारी आनंदकारी।
जयवन्तो जिनराज रे,आनन्द अपरम्पार रे । टेक।।
महाभाग्य से दर्शन पाये, मोहादिक दुर्भाव नशाये ।
मूरति प्रभु की सब दुःखहारी, प्रभुता प्रभु की मंगलकारी ।।1।।
चित्स्वरूप अपना पहिचाना, कर्म प्रपंच भिन्न सब जाना।
वाणी प्रभु की आनन्दकारी, प्रभुता प्रभु की मंगलकारी।।2।।
असत् विभावों की नहिं चिन्ता, स्वाश्रय से हो सहज ही अन्ता।
अद्भुत महिमा नाथ निहारी, प्रभुता प्रभु की मंगलकारी ।।3।।
प्रभु चरणों में शीश नवाऊँ, निर्ग्रन्थ पद की भावना भाऊँ।
पाऊँ ज्ञायक पद अविकारी, प्रभुता प्रभु की मंगलकारी।।4।।
Artist - ब्र.श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Singer: At. @Suchi_Jain