प्रभु आदर्श रहो | Prabhu adarsh raho

प्रभु आदर्श रहो, प्रभु आदर्श रहो-2।
तुम सम ही आतम आरधूं, निज पद पाऊँ अहो। टेक।।

परम दिगम्बर मुद्रा तेरी, दर्शन से मिटती भव फेरी।।
मंगल रूप विभो।।1।।

भेदज्ञान की ज्योति जगाती, दुर्विकल्प क्षण मांहि नशाती।
मूरत शांत प्रभो।।2।।

जग वैभव निस्सार दिखावे, निज वैभव ही मुझे सुहावे।
हृदय हर्षित हो।।3।।

ज्ञानमात्र निजभाव पिछाना, उपादेय आतम ही जाना।
अविरल ध्याऊँ प्रभो।।4।।

ध्येयरूप ध्रुव भाव निहारा, ध्याता-ध्यान अभेद चितारा।
सहजहि आनंद हो।।5।।

निर्ग्रन्थ हूँ निर्ग्रन्थ रहूं प्रभु , निज में ही संतुष्ट रहूँ अब।
भाव नमन नित हो।6।।

नहीं भ्रमूँ नहीं दु:ख पाऊँ, निज में ही आनंद मनाऊँ।
शिवपद पाऊँ प्रभो।7।।

Artist - ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

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