परमातम तेरा तारण हार
भटक भटक चौरासी वन में, ठोकर खायी है पग पग में ।
अजहूं न पायो पार, शुद्धातम तेरा तारण हार ।
बहुत बार सुरपद भी पायो। नक शक चकी कहलायो,
पायो न तत्व विचार ||शद्धात्म।।
अब दुर्लभ मानव तन पायो सुर सुरपति जाको तरसायो।
जो जो दुख इस जगत में पाये कैसे कब तक जा सुनाये ।
सब जानत जाननहार |शद्धात्म।।
चेतन निजपद को संभार ले, जड़ चेतन को भिन्न जान ले।
होगा बेड़ापार ||शुद्धातम तेरो तारणहार।।