पंच परमेष्ठी वन्दना । Panch Parmeshthi Vandana

पंच परमेष्ठी वन्दना
(नियमसार गाथा 71-75)
आचार्य कुन्दकुन्द देव

(प्राकृत गाथा)
घणघाइकम्मरहिया केवलणाणाइपरमगुणसहिया।
चोत्तिसअदिसयजुत्ता अरिहंता एरिसा होंति ।।७१।।
(हिन्दी हरिगीत)
अरिहंत केवलज्ञान आदि गुणों से संयुक्त हैं।
घनघाति कर्मों से रहित चौतीस अतिशय युक्त हैं।७१।।

(प्राकृत गाथा)
णट्ठट्ठकम्मबंधा अट्ठमहागुणसमण्णिया परमा।
लोयग्गठिदा णिच्चा सिद्धा ते एरिसा होंति।।७२।।
(हिन्दी हरिगीत)
नष्ट कीने अष्ट विध विधि स्वयं में एकाग्र हो।
अष्ट गुण से सहित सिध थित हुए हैं लोकाग्र में ।७२।।

(प्राकृत गाथा)
पंचाचारसमग्गा पंचिंदिय दंतिदप्पणिद्दलणा।
धीरा गुणगंभीरा आयरिया एरिया होंति।७३।।
(हिन्दी हरिगीत)
पंचेन्द्रिय गजमदगलन हरि मुनि धीर गुण गंभीर अर।
परिपूर्ण पंचाचार से आचार्य होते हैं सदा ।।७३।।

(प्राकृत गाथा)
रयणत्तयसंजुत्ता जिणकहियपयत्थदेसया सूरा।
णिक्कंखभावसहिया उवज्झाया एरिसा होंति ।।७४।।
(हिन्दी हरिगीत)
रतन त्रय संयुक्त अर आकांक्षाओं से रहित ।
तत्त्वार्थ के उपदेश में जो शूर वे पाठक मुनी।।७४।।

(प्राकृत गाथा)
वावारविप्पमुक्का चउव्विहाराहणासयारत्ता।
णिग्गंथा णिम्मोहा साहू दे एरिसा होंति ।।७५।।
(हिन्दी हरिगीत)
आराधना अनुरक्त नित व्यापार से भी मुक्त हैं।
जिनमार्ग में सब साधुजन निर्मोह हैं निर्गन्थ हैं।७५||


Singer: @Deshna

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