निज आत्मा में देखो, भगवान बस रहा है।
मंगलायतन में देखो, अमृत बरस रहा है ।।टेक।।
तुझमें कर्म नहीं हैं, तुझमें नहीं कषायें।
अपनी ही भूल चेतन, भव भव तुझे रुलाएं ।।
तू आज तक भी चेतन, कुंदन-सा ही खरा है ।।1।।
भवताप को मिटाने, निज में ही शक्ति क्षमता।
अनजाने में हुई थी, दुखदाई मोह ममता ।।
आया मुहूर्त मंगल, हर रोम जग गया है ।।2।।
भगवान आतमा हूँ, गुरुदेव ने बताया।
पामर नहीं प्रभु हूँ, वैभव अमिट दिखाया ।।
सिद्धों से कम नहीं हूँ, आगम ये कह रहा है ।।3।।
सब तीर्थों का राजा, स्वर्णिमपुरी हमारा।
सर्वोच्च सौख्य पाने, गुरुदेव करें इशारा ।।
सिद्धायतन स्वयं हूँ, अनुभव ये कह रहा है ।।4।।