नगन दिगम्बर संत पधारे, आँगण में आज मेरे
नरभव सफल हुआ मेरा, आहार करा के होऽऽऽ।।टेक।।
नवधा भक्ति से पड़गाहो, दोष रहित आहार कराओ।
नमन करो त्रियोग सम्हारो, मुक्ति रमा के नाथ पधारे।।१।।
दया क्षमा करुणा के सागर, धन्य हुआ मैं दर्शन पाकर।
सिद्धों के लघु नंदन पाकर, चलते फिरते सिद्ध पधारे।।२।।
पल-पल में अंतर्मुख होते, सर्व जगत से निष्पृह रहते।
सिद्धों सम अपने को लखते, मानो खुद जिनराज पधारे।।३।।
गाय व्याघ्र तुम सन्मुख आते, एक घाट पर पानी पीते।
परिषह साम्य भाव से सहते, समता के भण्डार पधारे।।४।।