मन मोहक छवी थारी | manmohak chhavi thari

मन मोहक छवी थारी
निरखत ही समता रस झरता झलकन देखें म्हारी ॥ टेक॥

क्रूर सिंह भी हिंसा छोड़े, देखते ही छवी थारी।
भेदभाव न रंक राज का, साम्य सुधारस धारी ॥१ ।।

त्यों निज आतम भाव प्रकट है, ज्यों शीतलता वारी।
निजस्वभाव के बाण चलाएँ, कर्म सैन्य सब हारी ॥२॥

सुनकर तुमरी हर्षित जावें, हित-मित वाणी प्यारी ।
नमन करत ‘सिद्धांत’ भया मैं आतम जानी न्यारी ॥३॥