मंगलमय हो मंगलकारी परमात्मा।
ज्ञान के तुम सागर, पूज्य हो रत्नाकर, शुद्धात्मा।।
मोह के तुम नाशक, स्वपर के प्रकाशक, सिद्धात्मा।।टेक।।
वीतराग तुम परम दिगम्बर, तुम सर्वज्ञ हो जगत् हितंकर।
ध्रुव हो अचल तुम्हीं भगवंता, कहलाओ तुम सिद्ध महंता।।
अष्ट्र कर्म को तुमने नाशा परमात्मा …।।१।।
तुमने भव समुद्र है नाशा, अरु केवल निज ज्ञान प्रकाशा।
वसुन्धरा अष्टम के वासी, मैं भी हूँ प्रभु का विश्वासी।।
शिखामणि तीनों लोकों के परमात्मा …।।२।।
ज्ञान पूज्य है अमर आपका, इसीलिए कहलाते बुध।
तीन भुवन के सुख सम्वर्धक, अतः तुम्ही शंकर हो शुद्ध।।
ध्याकर तुमको भव से तिरते परमात्मा …।।३।।