लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

मोबाईल का दर्द

एक फैक्टरी मालिक राघवेन्द्र का जीवन अत्यन्त व्यस्त था। उसके मोबाईल फोन का स्विच कभी बन्द नहीं रह पाता। भोजन करते समय भी वह खाली नहीं रह पाता, दो चार फोन आ ही जाते। सोते समय भी तकिया के पास मोबाईल रहता। नींद से उठ कर फोन पर बातचीत करता रहता।
पत्नी ने कई बार समझाया, परन्तु वह न माना। अन्त में सिरदर्द रहने लगा। उसके ऊपर भी वह ध्यान न देता। दर्द निवारक गोलियाँ खा-खाकर काम करता रहता।
एक बार भयंकर दर्द हुआ। गोलियाँ भी काम नहीं कर रही थीं। जाँच कराने पर मालूम हुआ कि मष्तिष्क में ट्यूमर हो रहा है।
घबराया और सावधान हुआ। चिकित्सक की सलाह के अनुसार मोबाइल पर बातचीत करना बन्द किया।
भाग्य से उसे एक आध्यात्मिक आरोग्य सदन का पता लगा। वहाँ उसने जाकर छह माह चिकित्सा ली। एकान्त मिलने पर उसने आत्मा-परमात्मा, धर्म आदि पर विचार किया। धन की असारता को समझा। तब उसे बचपन में दी जाने वाली दादी माँ की शिक्षायें याद आने लगी।
१. 'न्याय से कमाओ, विवेक से खर्च करो व सन्तोष से रहो।'
२. आवश्यकता से अधिक कमाना भी भूख से अधिक खाने के समान हानिकारक है।
उसने ठीक होने के बाद व्यापार को सीमित किया, चर्या को सुधारा और व्यवस्थित किया। धर्म एवं परोपकार में भी ध्यान दिया। फिर तो उसे शान्ति भी मिली और यश भी।

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