लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

टी.वी. के दुष्परिणाम

बैंक मैनेजर संदीप, माता-पिता से दूर सर्विस करता था। उसने पहले तो पत्नी के आग्रह से टी.वी. खरीद ली और कभी-कभी स्वयं भी देख लेता।
परन्तु कुछ दिनों के बाद उसे टी.वी. देखने का व्यसन हो गया। ऑफिस से आकर टी.वी. देखने बैठ जाता। भोजन भी वहीं टी.वी. देखते-देखते करता। कुछ अश्लील फिल्में भी देख लेता; अतः चित्त चंचल रहता। बच्चों पर भी ध्यान नहीं दे पाता। बच्चे भी टी.वी. देखने बैठ जाते। घर के कार्य भी समय पर नहीं हो पाते। रात्रि को देर से सोने के कारण कब्ज रहने लगा। आँखों पर भी दुष्प्रभाव हुआ, जलन पड़ने लगी। चश्मे का नम्बर भी बढ़ता जा रहा था। मस्तिष्क भारी-भारी रहता। स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया।
अब तो घर पर पत्नी और ऑफिस में कर्मचारी परेशान रहने लगे। वह स्वयं टेंशन में (तनाव-ग्रस्त) रहने लगा, सौभाग्य से उसका एक सहपाठी मित्र अरुण आया। उसका प्रसन्न चेहरा और अच्छा स्वास्थ्य उसे बहुत सुहावना लगा। बातचीत में स्थिरता, मधुरता उसे बहुत अच्छी लगी।
अरुण ने बताया वह दैनिक स्वाध्याय करता है। दूसरे दिन वह उसी नगर के जिनमंदिर में चलने वाली स्वाध्याय गोष्ठी में संदीप को ले गया। प्रवचनों से प्रभावित होकर उसने एक दिन टी.वी. देखने का त्याग ही कर दिया।
वह अच्छी पुस्तकों एवं शास्त्रों के अध्ययन में अपना समय लगाने लगा। अब वह जल्दी उठता। प्रातः की शुद्ध वायु और शुद्ध चिन्तन उसके लिए अमृत-तुल्य भासित हुई। शीघ्र स्नानादि करके प्रवचन में पहुँचता। वहाँ से आकर प्रसन्नता से सात्त्विक भोजन करता। ऑफिस के कार्य में मन लगने लगा। ईमानदारी से अच्छा कार्य करने से प्रतिष्ठा भी बढ़ी।
घर के कार्यों एवं बच्चों की पढ़ाई एवं संस्कारों पर ध्यान देने से परिवार का वातावरण भी सुधर गया।
फिर तो वह टी.वी. के दुष्परिणामों पर लेख लिखकर पत्रिकाओं एवं समाचार-पत्रों में भेजता। जहाँ भी भाषण का अवसर मिलता वह उसकी चर्चा अवश्य करता।

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