लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

हठी बालिका

एक दस वर्ष की लड़की, लाड़ में कुछ हठी हो गयी थी। घर सड़क के किनारे था। माँ के मना करने पर भी बार-बार सड़क पर निकल जाती। एक बार तेज वाहनों के बीच एक मोटर सायकल से टकरा गयी। पैर की हड्डी टूट गयी। थोड़ी चोट पसली में भी लग गयी।
यद्यपि उपचार से ठीक तो हो गयी,परन्तु दस-बारह दिन स्कूल न जा पाई। परीक्षा का समय समीप था। परीक्षा में पास तो हो गयी, परन्तु अंक कम आये। वह रोने लगी। उसकी अध्यापिका ने समझाया- “हमें सदैव बड़ो की बातों पर ध्यान देना चाहिए। इसमें अपना ही लाभ है।”
फिर तो उसने हठ न करने की प्रतिज्ञा ही ले ली।

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