लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

कटु वचन

हरेन्द्र अपने मित्र देवेन्द्र के यहां गया। वहां उसका उत्साहपूर्वक स्वागत हुआ। नाना मिष्ठान एवं पकवान बनाये गये। भोजन के बाद सुन्दर बिस्तरों पर आराम कराया। मंहगी भेंट आदि दी गयी, परन्तु चलते समय वहीं खड़ी देवेन्द्र की पत्नी ने हंसी करते हुए कुछ अयोग्य वचन कह दिए-" तुम्हें घर पर ऐसे भोजन कहां मिलते होंगे?"
स्वाभिमानी हरेन्द्र को बहुत बुरा लगा और उसने वहां भविष्य में न आने का नियम ही ले लिया।
वास्तव में कटु वचन,स्नेह को भंग करने वाला महादोष है। कठोर एवं निंद वचनों द्वारा अगणित विसम्वाद एवं संघर्ष होते देखे जाते हैं।
सावधान! मौन रहो या योग्य हित-मित-प्रिय वचन बोलो।

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