लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

कष्टकारी छल

खेत में फसल पक रही थी। इस वर्ष मौसम के सहयोग से फसल भी अच्छी थी। किसान हरि, फसल की रक्षा के लिए वही सोता था।
एक रात्रि को चोरी करके चोर, उधर से निकल रहे थे। उसने अपनी बड़ी टॉर्च से गाड़ी की सायरन जैसी आवाज एवं रोशनी, दूसरी ओर फेंकी। चोर समझे कि कोई गाड़ी आ रही है, वे धन को खेत में फेंककर भाग गये।
हरि उतरा, उसने इकट्ठा कर मचान के निचे गाढ़ दिया।कुछ दिनों बाद वे ही चोर उधर से फिर निकले।उसने वैसा ही किया। चोर इधर उधर देखने लगे और तो कोई दिखा नहीं, किसान दिख गया। उन्होंने उसे पकड़ कर मारा और पिछला धन भी निकल ले गये।
हरि दुःखी होता हुआ विचारने लगा - "लोभवश किसी को धोखा देने का दुष्फल जीव को स्वयं ही भोगना पड़ता है मेहनत से प्राप्त, भाग्य प्रमाण सामग्री में ही संतोष करना हितकर है।"
अंत में हरि ने फिर कभी ऐसा न करने की प्रतिज्ञा कर ली और संतोषपूर्वक रहने लगा।

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