लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

देखा-देखी

ग्राम पंचायत के सरपंच का चुनाव जीतने के बाद जैन साहब का विजय जुलूस निकल रहा था। परोपकारी लोकप्रिय होने के कारण महिलायें भी मंगल कलश लिए गीत गा रहीं थी। उधर से जैसे ही जैन साहब का निकलना हुआ कि एक विधवा स्री निकली। उसने देखा तो अपशकुन के भय से वह गली में छिप गयी। जैन साहब ने देख लिया। वे उसके विवेक पर बहुत प्रसन्न हुए। सबको सौ-सौ रुपये और उस स्त्री कोएक हजार रुपये उन्होंने दिलवा दिये।
परस्पर की वार्ता से, यह बात सभी स्त्रियों को जब मालूम पड़ी तो उन्होंने अभिप्राय तो समझा नहीं। ऐसे ही दूसरे प्रसंग पर बहुत स्त्रियाँ सफेद धोती पहन कर खड़ी हो गयी।
जैन साहब ने पूछा -“ऐसा क्यों किया ?”
तब एक स्त्री बोली -"आपको प्रसन्न करके अधिक रुपये पाने के लोभ से। "
तब वे बोले -“मैंने विधवा के विवेक पर खुश होकर उसके सहयोग की भावना से ऐसा किया था। आप लोगों को लोभवश ऐसा करना कदापि उचित नहीं था।”
कार्य करने से पहले भलीप्रकार विचार कर लेना ही हितकर है।

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