लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

चोरी भी हिंसा है

एक विधवा महिला का इकलौता पुत्र बीमार हो गया। जहां वह नौकरी करती थी, उसी सेठ से उसने कर्जा माँगा। दयालु सेठ ने उसे कर्जा दे दिया। वह रुपये लेकर घर आयी, परन्तु रात्रि को चोर घर में घुस कर, वह रुपया एवं अन्य सामान ले गये। धन के अभाव में इलाज न हो सका और उसका पुत्र मर गया। पुत्र के मोह में शोक करती हुई वह स्त्री भी मर गयी।

सत्य ही कहा है -
१.चोरी करना हिंसा करने जैसा ही पाप है।
२. पाप के उदय में सहाय का निमित्त नहीं बनता।
३. मोह ही दुःख का कारण है।
४. मोह के नाश के लिए सत्समागम और ज्ञानाभ्यास करना चाहिए।

जब सेठ ने यह घटना सुनी, उसे वैराग्य हो गया और समस्त परिग्रह का त्याग कर दिगम्बर आचार्य की शरण में पहुँचा और मुनिदीक्षा ले आत्मकल्याण में लग गया।

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