क्षणभंगुर इस झूठे जग में…
क्षणभंगुर इस झूठे जग में, मुझको अब नहीं रहना
हम सिद्ध शिला पर जाएंगे, तुम देखते रहना
दृष्टि सम्यक् हो जाएगी और निज को लक्ष्य बनायेगी
संयम का अंश प्रकट करके, अविरत का भाव नशाएगी
जड़ रत्नों को छोड़ के इक दिन पहने रत्नत्रय गहना
हम सिद्ध…
हम निज का ध्यान लगायेंगे कैवल्यज्ञान हो जाएगा
फिर लगा हो चाहे समवसरण बस ज्ञायक भाव सुहाएगा
काल अनंतानंत हमें फिर, सिद्धों के संग रहना
हम सिद्ध…
स्थिरता बढ़ती जाएगी, मुनिदशा धन्य हो जाएगी
और तीन कषाय चौकड़ी भी, फिर सहज नष्ट हो जाएगी
परिषह और उपसर्गों के भी बस ज्ञाता ही रहना
हम सिद्ध…
Source: मंगल भक्ति सुमन पृष्ठ क्रमांक १७५ ( एडिशन: २०१८)