Kshamapana l क्षमापना -श्री मद् राजचन्द जी

क्षमापना
रचयिता- श्री मद् राजचन्द जी

हे भगवान! मैंने बड़ी भूल की, जो कि आपके अमूल्य वचनों को लक्ष्य में नहीं लिया। मैंने आपके कहे हुए अमूल्य वचनों का विचार भी नहीं किया। मैंने आपके बताये हुए उत्तम-शील स्वभाव का सेवन नहीं किया। मैंने आपके कहे हुए दया, शांति, क्षमा व पवित्रता को पहिचाना ही नहीं।

हे भगवान! मैं भूल गया, मैंने मेरी भूल से ही भ्रमण किया,
रुला और अनन्त संसार की विडम्बना में पड़ा हूँ। कर्म-कलंक का संग करने से भावकर्म से मलिन हूँ। हे विरागी भगवान ! आपके बतलाये हुए तत्त्व का ग्रहण किये बिना मेरा कल्याण नहीं हो सकता।

प्रभु! मैं निरन्तर प्रपंच में पड़ा हूँ। अज्ञान से अन्ध हो रहा हूँ,
मेरे में विवेक-शक्ति नहीं है, मैं दृढ़ हो रहा हूँ। मैं निराश्रित अनाथ हूँ। हे निरागी परमात्मा ! अब मैं आपका व आपके बतलाये हुए धर्म का व गुरुओं का शरण ग्रहण करता हूँ। मेरे अपराध क्षय हों। मैं सर्व पापों से मुक्त होऊँ, ऐसी मेरी भावना है, अभिलाषा है। पूर्व में किये हुए पापों का मैं पश्चाताप करता हूँ।

जितना जितना मैं सूक्ष्म विचारों में गहरा उतरता हूँ, उतना
उतना आपके तत्वों के चमत्कार मेरे स्वरूप का प्रकाश करते हैं। आप विरागी निर्विकारी, सच्चिदानंद, सहजानन्दी, अनन्तज्ञानी, अनंत दर्शन और त्रैलोक्य प्रकाशक हो। मैं आपके कहे हुए मार्ग में दिन-रात रहूँ, यही मेरी आकांक्षा तथा वृत्ति रहे-यही भावना है।

हे सर्वज्ञ प्रभु! आपसे मैं विशेष क्या कहूँ? आपसे कोई बात छिपी हुई नहीं है। आपके कहे हुए तत्वों में शंका नहीं होवे। आपके बतलाये हुए मार्ग में मैं रहूँ। हे सर्वज्ञ भगवान! आपसे मैं विशेष क्या कहूँ, आप मेरे सर्व दोषों को जानते हो। मात्र पश्चाताप कर मैं कर्मजन्य पापों की क्षमा चाहता
ॐ शांति…! शांति…!! शांति…!!!

श्री सीमंधर स्वामी, श्री युगमन्धर स्वामी, श्री बाहु स्वामी,
श्री सुबाहु स्वामी, श्री संजातक स्वामी, श्री स्वयंप्रभ स्वामी श्री वृषभानन स्वामी, श्री अनन्तवीर्य स्वामी, श्री सूरप्रभ स्वामी, श्री विशाल कीर्ति स्वामी, श्री वज्रधर स्वामी, श्री चन्द्रानन स्वामी, श्री चन्द्रबाहु स्वामी, श्री भुजंगम स्वामी, श्री ईश्वर स्वामी, श्री नेमप्रभ स्वामी, श्री वीरसेन स्वामी, श्री महाभद्र स्वामी, श्री देवयश स्वामी और श्री अजितवीर्य स्वामी- इन नाम के धारक पंचमेरु सम्बन्धी विदेह क्षेत्र में बीस तीर्थंकर वर्तमान में विराजमान हैं- उनको मेरा नमस्कार हो।

उनके प्रति तथा श्री अरिहंत भगवान, श्री सिद्ध भगवान, श्री आचार्य महाराज, श्री उपाध्याय महाराज तथा श्री निर्ग्रन्थ मुनिराज तथा आर्यिका जी के प्रति तथा श्रावक-श्राविकाओं के प्रति किसी भी तरह से अविनय, आशातना, अभक्ति, अपराध किया हो, उसके लिए मैं क्षमा चाहता हूँ।

चौरासी लाख जीवयोनियों में मैने एकेन्द्रिय, दो इंद्रिय, तीन इन्द्रिय, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रिय आदि जिस किसी भी जीव का हनन किया हो, हनन कराया हो और हनन करने वाले की अनुमोदना की हो तो मेरे सर्व दुष्कृत्य मिथ्या हों। किसी भी जीव का विराधन, परितापन और उपघात स्वयं किया हो, अन्य से कराया हो, स्वयं करते हुए अन्य की अनुमोदना की हो, तत्सम्बन्धी मेरा समस्त दुष्कृत मिथ्या हो, निष्फल हो।

(९ बार णमोकार मंत्र का जाप कर कायोत्सर्ग करें)

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