Job के विषय में

क्या Job करना हम जैनियों का काम नहीं। क्या जैनियों का काम सिर्फ़ व्यापार करना है? मैंनें किसी प्रवचन में सुना कि हमारा Job करना जैनियों का काम नहीं है।

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जैन जॉब भी कर सकते है
लेकिन व्यापार बेहतर है

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यहाँ reason ये हो सकता है की जॉब के time हम किसी के अधीन होते है और उनके कहे अनुसार कार्य करना पड़ता है जो नेतिकता की दृष्टि से भी गलत हो सकता है और पाप रूप भी। व्यापार में हमारा control होता है । पर अगर job में ऐसी कोई दिक्कत न हो तो जॉब न करने का कोई reason मुझे दिखाई नहीं देता।

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The way commercial activities used to happen traditionally has been changed a lot over the last few decades. Now, anyone can own a fraction of companies (like equity investment), have flexibility in jobs (like remote working), have hundreds of options to actually make a living (due to internet).

Even if you’re highly satisfied with your job (in case you remember सदासुख दास जी, जयपुर story) - I think, its much sweeter spot to stay in than running a full-time business where you need to take care of so many things all together - creditors, lenders, customers, borrowers, suppliers, et cetera.

I would recommend reading this Quora answer by @Sarvarth.Jain

So everything boils down to a few things - as per your personal situations, wherever you can maintain the consistency of thoughts, independency and peacefulness - is the best way to move forward, whether its a job or a business.

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Sambhav_Jain_Shastri

1m

और भी बहुत से कारण है, जो विद्वानों द्वारा प्रवचन में कहा जाता है, वह सही है, क्यूंकि प्रवचन मोक्षमार्ग की दृष्टि से होते है।

और अपने सुमत जी भाईसाब इस विषय में बहुत कहते है,
जॉब करने का दूसरा अर्थ होता है किसी की गुलामी करना, और मुख्य बात ये है कि आज व्यक्ति व्यापार से ज्यादा जॉब को महत्व देता है, इसलिए प्रवचन कार अपने वचनों में कहते है , वर्तमान में मालिक से ज्यादा लोग नौकर बनना पसंद करते है, गुलामी करना पसंद करते है।

जिनके पास व्यापार की व्यवस्था नहीं है वो अगर जॉब करे तो समझ में आता है, किन्तु जिनका घर में अच्छा खासा व्यापार होता है, वह भी नोकरी करना गुलामी करना पसंद करता है। जो कि बहुत गलत सोच है।

इसलिए विद्वानों द्वारा ऐसा कहा जाता है।

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With all due respect. I have a question on

If I am doing business so I would require people for my business. Does that mean that I am making others slave only because I don’t want to be slave of others?

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मुझे कुछ समझ में ही नहीं आया

व्यापार करने पर किन्ही अन्य व्यक्तियों को हमारे यहाँ जॉब पर रखना पड़ेगा ।तो इसका यह मतलब है क्या की चूंकि हम किसी की गुलामी नही करना चाहते तो हम दूसरों को अपना गुलाम बनाये।

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बिल्कुल आप ऐसा अर्थ ले सकते हो, पर मैने अभी स्पष्ट किया , कि जिनके घर में अच्छा खासा व्यापार है को व्यापार छोड़कर नोकरी करना पसंद करते है ये सोच गलत है, जिन लड़कियों के घर में ना तो मायके में पैसे की कमी है ना ही ससुराल में पर फिर भी उन्हें दूसरों की गुलामी करना अच्छा लगता है ये उनके लिए है,

पर जिन्हें घर में खुदका कोई व्यापार नहीं लोग किराए के मकान में जीवन जीते है, खुदका व्यापार करने के लिए पैसे नहीं होते ऐसे व्यक्ति नोकरी करते है क्यूंकि उनके पास दूसरा कोई ऑप्शन नहीं होता ।

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मतलब व्यापार कर सकती हैं लड़कियां?

और दुसरों को अपना गुलाम बनाने की सोच सही है?

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मतलब गुलाम बनाना अच्छा लगता है तभी business kiya jaata hai.

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नहीं , वही तो बात है, अब ये हमें सोचना है, कि हम किसी को नोकरी पर रखते है तो उसके प्रति हमारा कैसा व्यवहार होता है, हमारी सोच गुलाम वाली होती है, या किसी की मदद करने वाली।

क्यूंकि जैन परिवारों में काम करने वालों को भी परिवार का सदस्य जैसा माना जाता है, हर त्यौहार पर उसकी खुशियों का पूरा ध्यान रखना, उनकी घर में कोई समस्या है तो अपनी समस्या समझकर उसकी मदद करना , ऐसा नहीं कि काम करो और पैसे लो और चलते बनो।

ऐसा जैन परिवारों में नहीं होता, किन्तु अन्य समाज में ऐसा ही होता है ।

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वर्तमान में कंपनी में काम और पैसा इसके अलावा कुछ नहीं है आपस में एक दूसरे से बाते करना हसना हसाना ये सब भी होना चाहिए। आज के समय में अपनी लाइफ को लोगो ने मशीन बना रखा है।। इसके बारे जितना कहे उतना कम में तो ये कहूंगा मालिक कितना ही करोड़पति क्यूं ना हो हर वर्कर के साथ दोस्ती जैसा व्यवहार होना चाहिए। गलती कितनी भी हो प्यार से बाते करे आराम से वर्क करे , तब जाकर कंपनी ऑफिस और घर में अंतर खत्म होगा। और काम में भी आनंद आएगा । काम काम नहीं लगेगा।

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यह अन्य मतावलंबियों में भी देखा जा सकता है। करूणा दया दान के भाव जैन घर मे जन्म लेने वाले के ही हों यह ज़रूरी नहीं। हो सकता है कि वो दूसरेभी अपने workers से अच्छा व्यवहार करते हो।

यह सोच सही नहीं है कि जैन घर मे जन्म लेने वाला व्यक्ति बहुत अच्छा है। जैन जिनदेव की आज्ञा मानने वाला होता है। जैन मत मानने वाले माता पिता की संतान वैसी ही हो यह ज़रूरी नहीं।
कई जैनों को मैने सब्जी वालों से 5-10rs के लिए बहस करते देखा है।
जैन मत वालों के यहाँ जन्म लेना और खुद जैन बन पाना इसमें बहुत अंतर है।

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पुराणों में भी अन्य मत के राजा और जैन मत के राज दरबारी बताए हैं। क्या उनके पास इतना धन नहीं रहा होगा कि खुद का व्यापार करे और अजैन के यहाँ नॉकरी न करें।

Logic तो यह है कि हम किसी पापदिक कार्य मे directly indirectly तरह से involve न हो अगर जॉब कर रहे है तो।

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शायद इसके पीछे यह सोच भी हो सकती है की हम बिज़नेस से जल्दी फाइनेंसियल फ्री हो सकते है। जो जॉब से पॉसिबल नही है।
ताकि हम बाकी का समय जैन तत्वज्ञान और आत्मकल्याण को दे सके, और पूरा जीवन पैसो के पीछे ना भागना पड़े। क्योकि जॉब में पेसो की फ्रीडम पॉसिबल नही हैं इसीलिए बिज़नेस अच्छा है।

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These two posts provides some very important points to think for both the occupational alternatives.

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@Sulabh ji - I completely accept your conclusive evidential post.

Just a small addition -

My dear,
The decision of choosing among Job or Business is absolutely a social choice, nothing to do with any particular culture or religion; because they are different perspectives.

Also, Jain Shravak is one of the phases where the man is entitled to certain requisites because he is attached to them OR a practitioner for being Mahavrati.

I don’t see any particular boundation for choosing between different ways of profit making.

Do them until they are needed or in a way which does not hinder the process of self-realization.

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Right… We cannot categorically say something to be good/bad for all.
There are many things to consider before going with any one of these options and that depends on personal and individual preferences.

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