28. व्यापार निर्देश
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लेन-देन में अत्यन्त सावधानी वर्ते । उधार देने से भी बचते रहें। वचन का निर्वाह करें।
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वचन के पक्के रहें, परन्तु वचन निर्वाह का टेंशन न करें। कोई मिथ्या अनुबन्ध हो जाने पर, गुरुजनों की मध्यस्थता में सुलझायें।
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हिसाब (लेखा) साफ एवं स्पष्ट रखें, इसमें उपयोग सूक्ष्म रखें, विशेष रूप से देने के प्रसंग में स्वयं पहल करें।
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भावावेश में कोई अनुबन्ध या व्यापार न करें।
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अनावश्यक कर्ज न लें, कर्ज शीघ्र चुकाने की नियत एवं प्रयत्न रखें।
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आवश्यकता, सामर्थ्य एवं पूँजी से अधिक व्यापार कदापि न करें।
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निवृत्ति की भावना रखें एवं योजनाबद्ध ढंग से निवृत्ति की ओर बढ़े।
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व्यापार के (प्रतिदिन) घण्टे भी स्थूल रूप से निश्चित करें, विशेष परिस्थिति में छूट। शेष समय सत्संगति, तीर्थयात्रा आदि सत्कार्यों में लगायें।
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व्यापारादि के कारण चर्या को न बिगाड़े। नीति एवं सिद्धान्तों में शिथिलता न करें।
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धर्मध्यान, स्वास्थ्य, पारिवारिक एवं सामाजिक दायित्वों का भी निष्ठापूर्वक निर्वाह करें।
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असीमित व्यापार न बढ़ाते जायें। आय का निश्चित अंश, दान एवं परोपकार के कार्यों में अवश्य खर्च करें।
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भावुकता पूर्वक अपनी आमदानी से अधिक खर्च न करें। मितव्ययी बने रहें।
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सहायता भी अपनी शक्ति देखकर ही करें। कहीं ऐसा न हो कि बाद में अपनी उलझनें बढ़ जायें एवं व्यवहार बिगड़ जाये। मिथ्या उदारता कभी-कभी कंजूसी से भी अधिक कष्टप्रद हो जाती है।
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लघुजनों को उदारता पूर्वक सहयोग करें। दूसरों को भी आजीविका प्रदान करें।
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अपने से कमजोर लोगों का ध्यान रखें, आवश्यकतानुसार एडवांस भी दे देवें, अपने कारण उन्हें हानि न हो पाये। उनका उदारता एवं युक्ति पूर्वक सहयोग करें।
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अन्याय एवं शोषण कदापि न करें।
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दूसरों से ईर्ष्या न करें। उनकी हानि कभी न सोचें ।
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ऐसा व्यापार प्रारंभ ही न करें जिसका सीधा सम्बन्ध (कच्चा माल आदि) कत्लखानों आदि से प्राप्त होता हो।
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ऐसा व्यापार न करें, जिससे अन्य बहुत से लोगों का व्यापार छिन जाये।
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नकली या मिलावट पूर्ण ऐसी सामग्री न बेचें जिससे दूसरों को हानि हो।
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लोभवश अनैतिक या अनिश्चितता पूर्ण (अत्यधिक उतार चढ़ाव वाले) व्यापार न करें । सिनेमा, नशा, मेडिकल, जुआ, सट्टा, लॉटरी, शेयरादि के व्यापारों का त्याग ही कर दें।
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हिंसक एवं विलासिता की सामग्री न बेचें, दीपावली पर पटाखे आदि न बेचें। ईमानदारी, प्रामाणिकता एवं सौहार्दपूर्ण व्यवहार रखें।
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वैभव का मिथ्या प्रदर्शन न करें। प्रदर्शन पूर्ण आयोजनों से भी दूर रहें। आमदनी अधिक होने पर भी आवास, वेशभूषा, खान-पान में विवेक पूर्वक सादगी एवं संतोष रखें।
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राज्य के नियमों का पालन करें, टेक्स आदि भी उचित रीति से समय पर जमा करायें।