जिनवाणी माता, जय अरहन्ता | jinvani mata, jay arihanta

जिनवाणी माता - २, जिनवाणी माता - २
जय अरहन्ता - २, जय अरहन्ता - २॥ टेक ॥

सात तत्त्वों छः द्रव्यों का जो ज्ञान करावे,
भव्य जनों को सच्चा मुक्तिमार्ग बतावे ।
अरहन्तों की वाणी है वो माँ जिनवाणी,
गौतम गणधर कुन्दकुन्द ने रची जो वाणी ॥१॥

स्व-पर भेद विज्ञान को जो करना, सिखावे,
सिद्धों जैसा मैं भी हूँ जो मुझको बतावे।
अरिहन्त आदि मंगल जो चार बतावे,
अरहन्तों की वाणी सुनना मन को भावे ॥२॥

तीन लोक का वैभव मुझको फीका लागे ।
अरहन्तों की बात मन को प्यारी लागे ।
भेदज्ञान की ज्योति जला भगवन बन जाए।
जिनवाणी की बात सुनी तो मन हर्षाए ॥३॥

1 Like