जिन नाम सुमर मन ! बावरे, कहा इत-उत भटकै |
विषय प्रगट विष बेल हैं, इनमें जिन अटकै || टेक ||
दुर्लभ नरभव पाय के, नग सों मत पटकै |
फिर पीछैं पछतायगो, औसर जब सटकै || १ ||
एक घरी है सफल जो, प्रभु गुन रस गटकै |
कोटि वरष जीयो वृथा, जो थोथा फटकै || २ ||
‘द्यानत’ उत्तम भजन है, लीजै मन रटकै |
भव-भव के पातक सबै, जै हैं तो कटकै || ३ ||
Artist- पं. द्यानतराय जी