जब एक रतन अनमोल है तो, रत्नाकर कैसा होगा?
जिसकी चर्चा ही है सुन्दर तो, वो कितना सुन्दर होगा ?
कहते अनुपम रसखान है वो, कब स्वाद चखें वह क्षण होगा॥ टेक॥
जिसके दीवाने हैं ज्ञानी, धर धुन में वही सवार रहे।
बस एक लक्ष और एक पक्ष, हर श्वांस उसी के लिए बहे ॥
जिसको पाकर सब कुछ पाया, उससे भी बढ़कर क्या होगा? ॥१॥
जो वाणी के भी पार कहा, मन भी थक करके रह जाये।
इन्द्रिय गोचर तो दूर, अतीन्द्रिय, के विकल्प में न आये ॥
अनुभवगोचर कुछ नाम नहीं, निरनाम भी क्या अद्भुत होगा ? ॥ २ ॥
सब अंग पढ़े नौ पूर्व रटे, पर उसका स्वाद नहीं आये।
तिर्यंच गति के अनपढ़ भी, ले स्वाद सफल भव कर जाये ।।
जड़ पुद्गल तो अनजान स्वयं, वो ज्ञान तुझे कैसे देगा ? ॥ ३ ॥
जिसकी महिमा प्रभु की वाणी, गाती मनमोहक लहराये ।
ध्रुवधाम गुणों के रत्नाकर, सब हैं परमेश्वर फरमाये ॥
तू माने या न भी मानें, परमात्मपना कम न होगा ॥ ४॥
कवि क्या, मुनि त्यागी हुये थकित, गणधर कथ पार नहीं पाये।
अनुभूति में तो दर्शन होते, जो होनहार वो लख पाये ॥
बस एक लगन भर हो सच्ची, तुझको निश्चित दर्शन होगा ॥ ५॥
व्रत प्रतिमा लो उपवास करो, या जंगल में डेरा डारो।
या करो पाठ पूजा वंदन, इस तन को खूब सुखा डारो ॥
ज्ञायक तो आनन्द खान सहज-जानन में निज दर्शन होगा ॥ ६ ॥
Singer: आदरणीय श्री मांगीलाल पं जी, कोलारस