गुरुओं के उपकार को हम | guruo ke upkaar ko hum

गुरुओं के उपकार को हम तो भुला सकते नहीं ।
तन भुला सकते हैं पर जिनधर्म भुला सकते नहीं ॥ टेक॥

जिसका श्रवण और पठन पाठन जीव को हितकार है।
जिसके हृदय में आ बसे, बस वो जगत का ताज है।
प्राण देकर भी कभी कीमत चुका सकते नहीं ॥१॥

है अनन्त उपकार उनका जो हमें वे दे गये
हम भी बने भगवान हममें बीज ऐसे बो गये |
क्या कहें हम जबकि, गणधर भी बता सकते नहीं ॥२॥

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