धन्य दिन, धन्य घड़ी | Dhanya din, dhany ghadi

(तर्ज : धन्य-धन्य आज घड़ी…)

धन्य दिन, धन्य घड़ी महासुखकार है।
प्रभुजी का दर्श हुआ आनन्द अपार है। टेक।।

इन्द्रादि चरणों में शीश नवाये हैं।
धन्य-धन्य जिनराज निज में समाये हैं।।
दृष्टि नासाग्र कहे आत्मा ही सार है।।1।।

देखने जानने योग्य निज आत्मा।
आत्मरसी अनुभवी ही होय अन्तरात्मा।
निर्ग्रन्थ साधु होय, ध्यावे समयसार है।।2।।

जितेन्द्रिय पूज्य, गुरू आत्मा में लीन हैं।
आत्म कल्याण माँहि परम प्रवीण हैं ।।
आत्म-ध्यान द्वारा ही होय भव पार है।।3।।

आपके प्रसाद से ही पाया भगवान है।
अपने ही अन्तर में आनन्द निधान है।।
तृप्ति मिली, शान्ति मिली तेरा ही उपकार है।4।।

रहूँ निर्द्वन्द प्रभु, भाऊँ मैं चिद्रूप ।
अनुभव ही चिन्तामणि, अनुभव है रसकूप ।।
निज में ही मग्न रहूँ, वन्दना अविकार है।।5।।

Artist - ब्र.श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

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