चलो रे भाई अपने वतन में चले
अपने वतन में तन ही नहीं है,
तन ही नहीं है मन भी नहीं है,
राग और द्वेष की दुविधा नहीं है,
विषय कषायों का ताप नहीं है,
दर्शन मोह को सुविधा नहीं है॥टेक॥
सुख सरोवर बहे-चलो रे भाई अपने वतन में चले…
सिद्धों से होगी रिश्तेदारी
मंगलमय परिणति अविकारी
सादि अनंत सहज सुखकारी
सुख अनंत लहे-चलोरे भाई अपने वतन में चले… ॥१॥
मुनियों का मार्ग भाने लगा है।
रत्नत्रय का रंग आने लगा है।
सिद्ध ही होंगे चारों ओर - चलो रे भाई अपने वतन में चले… ॥२॥
मुक्ति के मार्ग में, मैं भी चलूंगा
वन खण्डादि में अचल रहूँगा
चाहे उपसर्ग आ जाये- चलो रे भाई अपने वतन में चले… ॥३॥
मोक्ष महल में हम सब मिलेंगे
मोक्ष महल में मैं भी रहूँगा
चार गति में अब ना रुलूंगा
वीतरागी वाणी सुहाय-चलो रे भाई अपने वतन में चले… ॥४॥