Blood donation in jainism

जहाँ तक मैं अपने अध्ययन की बात करूं तो अभी तक किसी भी आगम/जिनवाणी में रक्तदान के संबंध में अनुमति अथवा निषेध जैसी विषय विशेष की चर्चा पढ़ने में नहीं आयी है। (यदि किसी ने इस विषय मे आगम में पढ़ा हो तो जरूर सूचित करें )
इसलिए इस संबंध में न ही तो संपूर्णतया निषेध ही उचित है और न ही अनुमति।

इसका निर्णय स्वविवेक के आधार पर ही संभव है।
चूंकि रक्त में निरंतर जीवों की उत्पत्ति होती है यह बात बिल्कुल सही है, और निश्चित तौर पर रक्तदान में भी किसी न किसी रूप में जीवों की हिंसा होती ही होगी।
किन्तु, ऐसा जानकर किसी को भी रक्तदान नहीं करना चाहिए ऐसा सर्वथा कथन भी उचित प्रतीत नहीं होता, कारण कि यदि मात्र हिंसा की दृष्टि से इसका निषेध करेंगे तो अन्य लौकिक कार्य करने से भी स्वयं को रोकना होगा, जैसे जिनमंदिर का निर्माण, भूमि की खुदाई, सिंचाई हेतु जल, जिस सामग्री का प्रयोग साज सज्जा हेतु किया जा रहा है उसमें जीवों की उत्पत्ति जैसे पुताई के कलर में sammurchan जीवों की उत्पत्ति, जिस सामग्री से निर्माण किया गया उसकी उत्पत्ति में होने वाली जीव हिंसा इत्यादि।
इस प्रकार अन्य भी समझना। यदि ऐसा हुआ तो जीवनयापन असंभव होगा।

Blood donation की प्रक्रिया भूमिकानुसार यदि घटित की जाए तो समाधान संभव प्रतीत होता है। क्योंकि श्रावक की भूमिका में दया और शुभ भाव की मुख्यता है और मुनि की भूमिका में शुद्ध भाव की, इसके अनुसार श्रावक का रक्तदान करना किसी हद्द तक उचित है, किन्तु ऊपर की भूमिका में अनुचित।

ध्यान इस बात का भी रखना कि हमारा दान किया हुआ रक्त किस जीव के हित मे प्रयोग किया गया है? यदि कोई सधर्मी अथवा मंद परिणामी जीव हो तो उसे दान करना एक नैतिक कर्तव्य है, लेकिन यदि कोई शराबी इत्यादि हो तो वहाँ दान करना अनुचित है।

फिर जिनागम में इसके संबंध में क्या समझा जाये ?
जिनागम में कुछ बातें इंगित भी की जाती हैं, पाप कार्य की अनुमति जिनागम कभी नहीं देता, किन्तु भूमिकानुसार जो नियम हैं उसके आधार से ऐसा करने में दोष तो है किंतु दया के भाव मुख्य है।

रही बात जनसंख्या,संतान उत्पत्ति आदि की तो उसके संबंध में चर्चा का कोई औचित्य नहीं है, प्राकृतिक प्रक्रिया सहज है और रहेगी।

हाँ, मृत्यु के बाद शरीर का क्या होना चाहिए तो इस संबंध में शरीर को जलाने का विधान आगामी जीवउत्पत्ति तथा उससे होने वाली हिंसा से बचने के लिए है। अतः इस संबंध में भी कोई विवाद उचित प्रतीत नहीं होता।

पुरुषार्थ और कर्तवाद इत्यादि की चर्चा इस विषय के मध्य मुझे अपेक्षित नहीं लगती, इसलिए इस संबंध में भी मौन।

14 Likes