अंग दान करना जिनागम की दृष्टि से उचित है या नहीं?

अधिक जानकारी तो नहीं है। एक बार रक्त दान से सम्बंधित चर्चा को अवश्य पढ़े। सम्भव है समाधान हो जाए

यद्यपि संयम जी ने इस विषय पर प्रकाश डाला है, तथापि इस संदर्भ में अधिक विचार अपेक्षित है।

यद्यपि खोटे पदार्थ का दान अनुचित है किंतु किस स्थान पर? किस कार्य हेतु? इस संदर्भ में भी चिंतन किया जाना चाहिए। यथा - जिनमंदिर के निर्माण हेतु भूमि का दान करना, जिनमंदिर के निर्माण हेतु आवश्यक औज़ार का दान करना उचित है। लोहे आदि का दान जिनमंदिर के द्वार बनाने में किया जाए तो सो वह उचित है।

अन्न, तेल, घी, गुड आदि का दान यदि साधर्मियों के भोजन हेतु किया जाए, मुनियों के आहार हेतु किया जाए सो वह उचित है।

यदि कोई मुनि सिर्फ़ गाय का ही दूध पीते हों ऐसी अवस्था में अन्य किसी दूसरे की गाय का दूध जो सम्भव है उतना शुद्ध ना हो जितना कि अपेक्षित है ऐसे में इस कार्य हेतु एक गाय समाज को दान करना उचित है।

यह बात भी बिलकुल सही ही है, किंतु बड़े धर्मकार्य के समक्ष छोटा पाप वर्जनीय नहीं है अन्यथा धर्मप्रभावना कैसे हो? जिनमंदिरों का निर्माण कैसे हो? शिविर आदि का आयोजन कैसे हो? इत्यादि।

एक और बिंदु जो विचारणीय है यह है कि यदि कोई विद्वान जिसके निमित्त से वर्तमान में जैन धर्म की धर्म प्रभावना होती दिखाई दे रही है और भविष्य में इससे भी अधिक अपेक्षित है, उन्हें अंग की आवश्यकता हो तो दान देना अथवा नहीं?

हाँ या ना में उत्तर दे पाना कठिन है किंतु ऐसे में भूमिका का विचार कर कार्य करना उचित है।

मुनि अंगदान दें यह अनुचित, पंचम गुणस्थानवर्ती अंग दान दे सो भी अनुचित, किंतु सामान्य श्रावक धर्मबुद्धि से योग्य साधर्मी को अंग का दान दे तो यह कदाचित ठीक ठहराया जा सकता है।

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