भ्रात जिनवाणी सम नहिं आन | Bhrat Jinvani sum nhi aan

भ्रात जिनवाणी सम नहिं आन, जान श्रुतपंचमी पर्व महान॥ टेक॥

एकान्तों का नहीं ठिकाना, स्याद्वाद का लखा निशाना।
मिटता भव-भव का अज्ञान, जान श्रुतपंचमी पर्व महान ॥१॥

केवलज्ञानी की यह वाणी, खिरे निरक्षर तदि समझानी।
सुरनर तिर्यंच सुनतें आन, जान श्रुतपंचमी पर्व महान ॥२॥

गणधर हृदय विराजी माता, ज्ञानस्वभाव सहज झलकाता।
सुनत चिन्तत हो भेदविज्ञान, जान श्रुतपंचमी पर्व महान ॥३॥

भविजन प्रीतिसहित चितधारे, रवि-शशि-सम तम को परिहारे ।
उर घट प्रगटे पूरन आन, जान श्रुतपंचमी पर्व महान ॥४॥

मोक्षदायिका है जिनमाता, तुम पूजक सम्यक् निधिपाता।
‘नन्द’ भी अपने आश्रित जान, जान श्रुतपंचमी पर्व महान ॥ ५ ॥

Artist - श्री नन्दलाल जी

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